Tuesday, December 26, 2017

मुझे मेरे तालाब लौटा दो..!

देखते ही देखते गांव देहात के जोहड़/तालाब विलुप्त हो गए ।
ठीक वैसे ही जैसे जीव जंतुओं की अनेक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।आखिर कहां गए ये तालाब ? कौन है जो अगस्त्यमुनि के समुद्री पी जाने की भांति देश के तालाबों को न केवल पी गया बल्कि उन्हें समूल नष्ट कर दिया?
हर गांव के तालाबों पर कुछ लालची लोगों की प्रारम्भ से ही नजर रही है।
हथछोया का उदाहरण लेते हैं जहां
विशाल डाब्बर पर शुरू से ही लोगों की गिद्द दृष्टि रही है। शोक-समंदर इस लालच की पूर्ति का एक बड़ा माध्यम बना। यह स्थिति सिर्फ हथछोया की नहीं है वरन ग्रामीण जीवन की एक कड़वी सच्चाई है। शोक समंदर एक जलीय कुकुरमुत्ता है जो दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ता है। यदि हम शोक-समंदर को "जलीय दानव" की संज्ञा दे तो बिलकुल भी गलत नहीं होगा। हथछोया मे इस जलीय दानव का सबसे पहले प्रवेश गुल्ही मे किसी शातिर "भू-भक्षक" ने कराया। देखते ही देखते इस दानव ने सम्पूर्ण गुल्ही का भक्षण कर लिया । इस की एक खास विशेषता यह है कि यह जल की समस्त ऑक्सिजन को ग्रस जाता है और जलीय जीवन का खात्मा कर देता है। इसका जो भी हिस्सा जल की एक विशेष मात्रा से ऊपर रह जाता है वह तेजी से सूख जाता है और तालाब के भराव का सबसे सुलभ और सस्ता साधन है। गुल्ही के बाद देववाला और विशाल डाब्बर इस "जलीय दानव" के शिकार बने। पशुओं के गोबर और घरेलू कूड़े के साथ मिलकर यह तालाबों के भराव के लिए बेहतरीन उपाय है। इसी विधि से गाँव के सभी तालाबों का शिकार किया गया।
गाँव की जैव-विविधता पर भी इस भू-भक्षण का विपरीत प्रभाव पड़ा। गाँव मे मुर्गाबी, बत्तख,नाकू आदि अनेक जलीय जीव बहुतायत मे पाये जाते थे जो अब सिर्फ चिड़िया घरों मे ही देखने को मिलते है।  सिंघाड़े की खेती से भी गाँव के बहुत से कश्यप परिवार एक अच्छी ख़ासी धन राशि कमाते थे जो अब बिलकुल समाप्त हो गया। वर्षाकाल के बाद भभूल के फूल ( सफ़ेद रंग के कमल के समान फूल) गाँव की शोभा को चार चंद लगाया करते थे , जो अब देखने को नहीं मिलते है। हम लोग अक्सर "भभूल के फूल" से हार बनाकर पहना करते थे।कल जहां खुशियो और आबादी के भभूल खिला करते थे, आज वहाँ शोक-समंदर के "बर्बादी के फूल" गाँव के दुर्भाग्य पर अपनी कुटिल मुस्कान बिखेर रहे है।
           गाँव के विशाल तालाब एक और जहां इसके भूमिगत जल के प्रमुख साधन थे, वहीं दूसरी और ये पशुपालन के भी बड़े प्रेरक कारक थे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार सदियों से पशुपालन रहा है। हरा चारा और प्रचुर जल पशुपालन के प्रमुख अवयव है। तालाबों के विनाश के कारण गाँव मे पशुपालन पर भी विपरीत असर पड़ा है। रोजाना शाम के समय तालाबों मे पशुओं के झुंडों का नहाना एक आम दृश्य हुआ करता था। लोग अपने पशुओं को पानी पिलाने और नहलाने के लिए इन तालाबों मे उतारा करते थे। लेकिन अब जब गाँव मे तालाब लगभग नष्ट हो गए है, पशुपालन के लिए जल उपलब्धता समाप्त प्राय हो गई है।
   सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर तालाबों का अतिक्रमण इतनी आसानी से कैसे हो गया जबकि ये समाज की साझा संपत्ति थे?
   मेरा मत है कि 1990 के दशक में देश मे पंचायत राज अधिनियम की स्थापना के साथ ही तालाबों की मौत की पटकथा भी लिख दी गई।इस अधिनियम के द्वारा ग्राम पंचायतों के चुनाव प्रारम्भ हुए जिससे ग्राम सभाएं भी घटिया एवं स्वार्थी राजनीति का केंद्र बन गई।गाँवो में पार्टीबाजी शुरू हो गई ।ग्राम प्रधान पद के वर्तमान एवं सम्भावित सभी प्रत्याशियों ने अपने समर्थकों को खुश करने के लिए सरकारी भूमि, गौचरान भूमि एवं तालाबों के अतिक्रमण के समय न केवल मौन साध लिया वरन उनको इस कार्य के लिए उकसाया भी।ग्राम प्रधान, ग्राम सचिव और ग्राम पटवारी सरकारी भूमि एवं तालाबों के संरक्षक होते है लेकिन इन तीनों की मिलीभगत से तालाब की भूमि बंदरबांट की भेंट चढ़ गई! तालाबों का अतिक्रमण करते समय दबंग डरे नही और शेष समाज ने अकर्मण्यता की चादर ओढ़ ली जिसका दुष्परिणाम  जोहड़ों/तालाबों के विलुप्तीकरण के रूप में सामने आया।कुछ लोगों के स्वार्थों की कीमत सम्पूर्ण समाज चुका रहा है।
ग्राम प्रधान,ग्राम सचिव और ग्राम पटवारी ही वह शक्तियां हैं जो अगस्त्यमुनि से भी शक्तिशाली सिद्ध हुई हैं।ये न केवल तालाबों का पानी पी गए वरन उनकी समस्त भूमि भी निगल गए।इन्ही की जिम्मेदारी तय करके कार्यवाही होगी तो शायद मेरे वो तालाब मुझे लौटाए जा सकें।

Saturday, December 23, 2017

अवार्ड

सहारनपुर, 23 दिसम्बर
पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने, पर्यावरण सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए कार्य करने एवं सामाजिक क्षेत्र में विशेष सेवा के लिए सहारनपुर में तैनात वाणिज्य कर/राज्य जीएसटी विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर सुनील सत्यम को इसड़ा राष्ट्रीय ग्रीन अवार्ड 2017 के लिए चुना गया है। यह खबर मिलने पर सुनील सत्यम के परिवार एवं समर्थकों में हर्ष व्याप्त हो गया है। कई साथी अधिकारियों ने मिलकर इस उपलब्धि के लिए सुनील सत्यम को व्यक्तिगत रूप से बधाई दी है।शहर एवं जिले के कई सामाजिक संगठनों ने भी इस उपलब्धि के लिए सुनील सत्यम को बधाई दी है।
सुनील सत्यम को 28 दिसम्बर को दिल्ली के मावलंकर हॉल में  पर्यावरण संरक्षण पर होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में इसड़ा नेशनल ग्रीन अवार्ड 2017 से सम्मानित किया जाएगा।
इसड़ा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाला विश्वविख्यात संगठन है।
इसड़ा के राष्ट्रीय महासचिव डॉ जितेंद्र ने सुनील सत्यम को ईमेल के द्वारा इसड़ा के इस निर्णय के विषय में अवगत कराते हुए 28 दिसम्बर को दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में उपस्थित होकर इसड़ा ग्रीन अवार्ड 2017, प्राप्त करने एवं ग्रामीण तालाबों के संरक्षण तथा पर्यावरण सुरक्षा पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया है।
सुनील सत्यम छात्र जीवन से ही पर्यावरण एवं समाज सेवा के क्षेत्र में बेहद सक्रिय है।सरकारी सेवा में रहते हुए भी उनकी सक्रियता एवं समाज सेवा कार्यों की हमेशा चर्चा होती है।सुनील सत्यम ने वर्ष 2002 में दिल्ली में पर्यावरण एवं पशु पक्षियों के संरक्षण के लिए फिएप नामक संस्था की शुरुआत की थी। फिएप ने देश के अलग अलग हिस्सों में पर्यावरण जागरूकता एवं पशु क्रूरता निवारण के प्रति अनेक राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया हैं।पर्यावरण जागरूकता पर देश के अलग अलग समाचार पत्रों में सुनील सत्यम के अनेक लेख भी प्रकाशित हो चुके हैं।
इस समय भी सुनील सत्यम महिला उच्च शिक्षा आंदोलन से जुड़े है जिसके तहत उनके पैतृक गांव हथछोया में प्रेमकुल मिशन ट्रस्ट द्वारा महिलाओं के लिए देवस्थली विद्यापीठ नाम से डिग्री कालेज की स्थापना की जा रही है।हथछोया के आसपास लगभग  20 किलोमीटर के दायरे कोई महिला महाविद्यालय न होने के कारण उनकी शिक्षा पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
जीएसटी एक्ट के लागू होने पर भी सुनील सत्यम को जीएसटी का नोडल अधिकारी तथा जीएसटी हेल्पडेस्क का सहारनपुर जिला प्रभारी नियुक्त किया गया है। सुनील सत्यम ने बताया कि 28 दिसम्बर को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन में शामिल होकर व्याख्यान देने एवं पुरस्कार ग्रहण करने के लिए उन्होंने उच्चाधिकारियों को मेल करके अनुमति मांगी है।अनुमति मिलने पर वह पुरस्कार ग्रहण करने दिल्ली जाएंगे। उन्होंने बताया कि इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चयनित होने पर वह गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।इस पुरस्कार से उनके पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को न केवल मान्यता मिली है वरन इससे भविष्य में और ज्यादा कार्य करने की ऊर्जा भी प्राप्त हुई है।
         वरिष्ठ भाजपा नेता रामपाल पुंडीर, दिनेश सेठी, राजीव चौधरी, अभाविप के विभाग संगठन मंत्री राजेन्द्र राष्ट्रवादी, विहिप के जिला प्रचार प्रमुख सचिन गुर्जर,राष्ट्रीय युवा गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय महासचिव लोकेश तंवर, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय सदस्य लोकेश सलारपुर एवं पत्रकार बलबीर तोमर ने सुनील सत्यम को मिलकर बधाई दी है।

Friday, December 1, 2017

फेसबुक से 2011

भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं.मौलिक अधिकार व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार हैं जो उन्हें किसी भेदभाव के बने प्रदान करने की संविधान के अनुच्छेद ३२ के द्वारा गारंटी प्रदान की गई है.इसके अतिरिक्त कोई व्यक्ति अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत है कोर्ट में भी अर्जी दे सकता है. आये दिन हम समाचार पत्रों के माध्यम से पढ़ते भी रहते  है की फला व्यक्ति ने रित दायर की..यह सब जानकारी आप तक पहुँचाना मेरा मकसद नहीं है क्योंकि यह सर्व विदित है. मई सिर्फ यह सवाल उठाना चाहता हूँ की जब संविधान ने अनुच्छेद ३२ के तहत यह व्यवस्था की है की अगर किसी दुसरे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो तो कोई अन्य व्यक्ति भी उसके अधिकारों की रक्षा की सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा सकता है तो क्या यह जरूरी नहीं है की लोगो के कर्त्तव्य पालन को भी अब संविधानिक प्रावधानों के जरिये अनिवार्य क्यों न बनाया जाये ? समस्याए यही से पैदा होती है क्योंकि हम सिर्फ अधिकारों के प्रति जागरूक है..कर्तव्यों से हमारा कोई लेना देना नहीं है.
  इस बात का सन्दर्भ मैंने अनावश्यक ही नहीं लिया है.भारतीय संविधान में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति को व्यस्क मताधिकार प्रदान किया गया है, जो अधिकार भी है एवम कर्तव्य भी.प्रत्येक भर्ती का यह परम कर्तव्य है की वह भारत गणराज्य को एक लोकतान्त्रिक सरकार चुन कर दे.
मतदान के दिन को हम अवकाश पर्व के रूप में मानाने के आदि हो गए हैं..अपने आप को बुद्धिजीवी कहलाने वाले व्यक्ति इस दिन ताश खेलकर या फिर कुछ जरूरी कम करके अपना समय व्यतीत करते है..शराब की चाहत वाले और कुछ ऐसे लोग जिन्हें अपने मत की कीमत ही मालूम नहीं होती १००-२०० रूपये में अपना मत बेच देते हैं.उन्हें इस बात से कोई लेना देना नहीं की उनके मत से कोई कलमाड़ी जीतेगा या कोई ए राजा ? कथित बुद्धिजीवी फिर या तो चुनाव समीक्षा करते हुवे मीडिया माध्यमों में नजर आते हैं या उनमे से कुछ परिवर्तन की बड़ी बड़ी बाते करते है...अथवा फिर कुछ सुधारक आंदोलनों के माध्यम से हाय तौबा मचाते है.
अधिकारों का दूसरा पहलु कर्त्तव्य ही होता है फिर यह कैसे संभव है की अधिकार तो अनिवार्य बना दिए जाये और कर्तव्यों को विवेक पर छोड़ दिया जाये. प्रत्येक व्यक्ति सरकार से अपने सभी अधिकारों की सुरक्षा चाहता है.
कोई भी चुनाव सुधार बेमानी ही रहेगा अगर वोट % 50 के आस- पास ही बना रहा.अनिवार्य मतदान का कानून चुनाव सुधार की आवश्यक शर्त है. अगर हमें अधिकार चाहिए तो हमें अपने कर्तव्यों का भी कड़ी से पालन करना होगा.कर्तव्य पालन नहीं तो अधिकारों में कटौती जरुरी है.अगर कोई व्यक्ति मतदान न करे तो उसके राशन कार्ड जैसे अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है..या कोई दूसरा उपाय खोजा जा सकता है..
  हमारे देश में कोई अच्छी बात तभी अच्छी होती है जब उसे कोई शक्तिमान या सत्त्ताधारी दल का कद्दावर नेता कहे.
  नरेन्द्र मोदी ने अनिवार्य मतदान की बात की थी लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया था.यही बात अगर राहुल गाँधी या सोनिया गाँधी ने कही होती तो उनकी तारीफ में कसीदे पढ़े जाते.. आवश्यक है की हर सही बात को सही और गलत को गलत कहने का साहस जुटाएं हम. चुनाव सुधारों की बात करते समय तार्किकता और व्यवहारिकता को ध्यान में रखने की जरूरत है..बाते और भी है चलती रहेगी..

कुंवर सत्यम,
दिल्ली विश्व विद्यालय, दिल्ली.