Wednesday, September 23, 2020

ये वो गांव नही..

उत्तर प्रदेश के शामली (तब मुज़फ्फरनगर) गांव में मेरा जन्म हुआ था सही दिनांक और सन न मुझे पता न मेरे मां बाप को ही ठीक से याद है।लाल रंग की एक बही में पिताजी ने मेरे जन्म की तारीख नोट की थी जो काफी वर्ष पहले गायब हो गई।इसलिए शैक्षणिक अभिलेख में अंकित 12 अगस्त 1977 ही मेरी असली जन्मतिथि मानी जानी।चाहिए।
गांव के प्राथमिक पाठशाला हथछोया नम्बर एक अर्थात शिवाले में मेरी प्राथमिक शिक्षा हुई।
.......जारी

Sunday, September 6, 2020

कुरान और धर्मनिरपेक्षता

जो लोग इनकार करेंगे (कलमे का) और हमारी निशानियों को झुठलायेंगे तो वही लोग दोजख(नरक) में रहेंगे, वे उसमे हमेशा रहेंगे.(34-39)सुरह 2, अल बक़रह
हमने  बनी इजरायल से अहद (वचन) लिया कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करोगे (83)सुरह 
2, अल बक़रह
कुरान को आंशिक रूप से नही मान सकते हैं:
 क्या तुम किताब ए इलाही के एक हिस्से को मानते हो और एक हिस्से का इनकार करते हो। पस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सजा इसके सिवा क्या है कि उन्हें दुनिया की जिंदगी में रुसवाई हो और कियामत के दिन उन्हें सख्त आजाब में डाल दिया जाए।
अल्लाह उस चीज से बेखबर नही है जो तुम कर रहे हो।पस न इनका अज़ाब हल्का किया जाएगा और न इन्हें मदद पहुंचेगी(84-86) सुरहन2, अल बक़रह
अल्लाह के उतारे हुए कलाम का इनकार करने वालों के लिए जिल्लत का अजाब है।(87-90) सुरह 2, अल बक़रह
निरस्त भी होती हैं आयतें
हम जिस आयात को मौक़ूफ़(निरस्त) करते हैं या।भुला देते हैं तो उससे बेहतर या उस जैसी दूसरी लाते हैं।(104-108)
वही है जिसने तुम्हारे ऊपर कितना उतारी, इसमे कुछ आयतें मोहकम(सुदृढ, सुस्पष्ट) हैं और दूसरी आयते मुताशाबह (संदेहास्पद, अस्पष्ट) हैं।पस जिनके दिलों में टेढ़ है वे मुताशाबह के पीछे पड़ जाते हैं, फ़ितने की तलाश में और इनके अर्थों की तलाश मरण।हालांकि इनका अर्थ अल्लाह के अलावा कोई नही जानता है।(सूरह 3, आले इमरान)
इनकार करने वालों का अल्लाह का धोखा:
....अल्लाह ने कहा कि जो इनकार करेगा मैं उसे भी थोड़े दिनों फायदा दूंगा, फिर उसे आग के अजाब की तरफ धकेल दूंगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है।(125-126)
सूरह 2 अल बक़रह
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम फर्जी है:
और कुछ लोग हैं जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसके बराबर ठहराते हैं उनसे ऐसी मोहब्बत रखते हैं जैसी मोहब्बत अल्लाह से रखना चाहिए और जो ईमान वाले हैं यह सबसे ज्यादा अल्लाह से मोहब्बत रखने वाले हैं और अगर यह जालिम उस वक्त को देख लें जबकि वह हजार को देखेंगे कि जोर सारा का सारा अल्लाह का है अल्लाह बड़ा सख्त सजा देने वाला है जबकि वह लोग जिनके कहने पर दूसरे चलते थे उन लोगों से अलग हो जाएंगे जो इनके कहने पर चलते थे आज आप उनके सामने होगा और उनके तब तक के रिश्ते टूट चुके होंगे वे लोग जो पीछे चलते थे कहेंगे काश हमें दुनिया की तरफ लौटना मिल जाता तो हम भी उनसे अलग हो जाते।इस तरह अल्लाह एंकर आमाल को उन्हें हसरत बनाकर दिखायेगा और वे उस आग से निकल नही सकेंगे।(165-167) अल बकरा, सूरा 2
कुरान की पुनर्व्याख्या गैर इस्लामी
अल्लह ने अपनी किताब को ठीक ठाक उतारा एमजीआर जिन लोगों ने किताब में कई रह निकाल ली वे जिद में दूर जा पड़े(172-176)
ईमान किस पर?
आदमी ईमान लाये
अल्लाह उसके रसूल, आख़िरत,फरिश्तों और किताब पर। (177 अल बक़रह, सूरा 2)
जिहाद: अल्लाह की राह में लडाई
तुम पर लडाई का हुक्म हुआ है।....(2:215)
अल्लाह की राह में जिन्होने जिहाद किया वे अल्लाह की रहमत के उम्मीदवार हैं।(218,सूरा 2 अल बक़रह)
जो शख़्श अल्लाह की राह में लड़े, गिर मारा जाए या ग़ालिब हो तो हम उसे बड़ा अज्र(प्रतिफल) देंगे(4:71-76)
जबकि वे सफर या।जिहाद में निकलते हैं और उन्हें मौत आ जाती है ...(3:156 आले इमरान)
लड़ो अल्लाह की राह में।तुम पर।अपनी जान के सिवा किसी की जिम्मेदारी नही है और मुसलमानों को उभारो..(4:84 अन निसा)
उन्हें(मुंकीरों को) पकड़ो और जहां कहीं भी पाओ उनको कत्ल करो और उनमें से किसी को साथी और मददगार न बनाओ....(4:88-89 अन निसा)
..वे मुसलमान जो अल्लाह की राह में अपनी जान और अपने माल से लड़ने वाले हैं, वे बैठे रहने वाले मुसलमानों से बड़े दर्जे वाले हैं।माल व जान से जिहाद करने वालों का ,बैठे रहने वालों की निस्बत बड़ा है,उनके लोए मगफिरत एवं रहमत हैं।(4:94-96)१
कुरान में लव जिहाद
मुशरिक औरतों  से निकाह ना करो जब तक वह ईमान न लाएं और मोमिन कनीज बेहतर है एक मुशरिक औरत से,।अगरचे।वज तुम्हे अच्छी मालूम हो। और अपनी औरतों को मुशरिक मर्दों से निकाह में न दो जब तक वे ईमान न लाएं, मोमिन गुलाम बेहतर है एक आज़ाद मुशरिक से अगरचे वज तुम्हे अच्छा मालूम हो।उठे लोग आग की तरफ बुलाते हैं और खुदा जन्नतऔर अपनी बख्शीश की ओर।.........
तुम्हारी औरतें  तुम्हारी खेतियाँ हैं।पास अपनी खेती में जिस तरह चाहो जाओ और अपने लिए आगे भेजो और अल्लह से डरो और जान लो कि तुम्हें जरूर उससे मिलना है।और ईमान वालों को खुशखबरी दे दो। (सूरा 2, अल बक़रह 221-224)
झूठी कसम
अल्लाह तुम्हारी बेइरादा कसमों पर तुमको नही पकड़ता है मगर वज उस काम पर पकड़ता है जो तुम्हारे दिल करते हैं।
अल्लाह केवल ईमान वालों का
जो इनकार करने वाले हैं वही जुल्म करने वाले ।अल्लाह ,इसके सिवा कोई माबूद(पूज्य) नही। वह जिंदा है सबको थमने वाला है।उसे न ऊंघ आती न नींद।उसी का है जो कुछ आसमानों और जमीन में है।
अललाह-काम बनाने वाला है,ईमान वालों का, वह उन्हें अंधेरों से निकलकर उजाले की तरफ लाता है एयर जिन लोगों ने इनकार किया उनके दोस्त शैतान हैं, वे उन्हें उजाले से अंधेरों की तरफ ले जाते हैं, ये आग मेम जाने वाले लोग हैं और हमेशा रहेंगे।
(सूरा 2 अल बक़रह, 254-257)
अल्लह जालिमों को राह नही दिखाता है (258)
अल्लाह के अलावा कोई माबूद(पूज्य) नही है।दिन अल्लाह के नजदीक सिर्फ इस्लाम है।(18-19, सूरह 3 आले इमरान)
हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराएं।और इसमें से कू किसी दूसरे को अल्लाह के शिव रब न बनाये।(सूरह 3, आले इमरान 64-65)
बेशक कॉलेज इसे नही बख्शेगा कि उसका शरीक ठहराया जाए और जिसने अल्लाह का शरीक ठहराया वह बहकाकर बहुत दूर जा पड़ा।वे अल्लाह को छोड़कर पुकारते हैं देवियों को और वे पुकारते हैं सरकश शैतान को।उस पर अल्लाह ने लानत की है।(4:116-117)
मुसलमानों के अलावा दोस्त नही
मुसलमानों को चाहिए कि मुसलमानों को छोड़कर हक का इनकार करने वालों को दोस्त न बनायेन और जो शक्श ऐसा करेगा तो उसका अल्लाह से को तअल्लुक नही।(सुरह 3 आले इमरान, 28)
...ए ईमान वालों, मोमिनों को छोड़कर मुंकीरों को अपना दोस्त न बनाओ(4:142-143)
अन्य धर्म स्वीकार नही
....जो शख्श इस्लाम के सिब किसी दूसरे दीन को चाहेगा तो वज उससे जरगीज कबूल नही किया जाएहा और वज आखिरी में नामुरादों में होगा।अल्लाह क्योंकर ऐसे लोगों कप हिदायद देगा जो ईमान लाने के बाद मुंकिर हो गए।
..बेशक जो लोग ईमान लाने के बाद मुंकिर हो गए और फिर कुफ्र में बढ़ते रहे उनकी टाउन हरगिज कबूल न की जाएगी और यही लोग गुमराह हैं।बेशक जिन लोगो ने इनकार किया और इनकार की हालत में मर गए अगर वे जमीन नहर सोना भी फिदये में दें तो कबूल नही किया जाएगा।उनके लिए दर्दनाक अजाब है और उनका कोई मददगार न होगा।
(सूरह 3, आले इमरान 81-91)
मुसलमान हैं एक गिरोह
अब तुम एक बेहतरीन गिरोह हो...(110, सूरह 3 आले इमरान)
बेशक जिन लोगों ने इनकार किया तो अल्लाह के मुकाबले में उनके माल और औलाद उनके कुछ काम न आएंगे।और वे लोग दोजख वाले हैं हमेशा उसी में रहेंगे।(सूरह 3,आले इमरान 113-117)
ए ईमान वालो,अपने गैर को अपना राजदार न बनाओ,वे तुमजे नुकसान पहुंचाने में कोई कमी नही करते हैं।(3:118 आले इमरान)
मुहम्मद सिर्फ एक रसूल है
मुहम्मद बस एक रसूल है।इनसे पहले बीजो रसूल गुजर चुके हैं फिर क्या अगर वह मर जाए या कत्ल कर दिये जायें।(3:144 आले इमरान)

अल्लाह बादशाह
अल्लाह के लिए है जमीन और  आसमान की बादशाही और अल्लाह हर चीज पर कादिर है।(3:189 आले इमरान), अल्लाह बादशाही के लिए खलीफा बनाता है।
बहु विवाह
औरतों में से जो तुम्हे पसन्द हो दो दो,तीन तीन या।चार चार  तक निकाह कर लो।4:1-4 अन निसा)

Friday, July 20, 2018

राष्ट्रीय जल ग्रिड

राष्ट्रीय जल ग्रिड कितना आवश्यक

कुंवर सुनील सत्यम

Source

योजना, फरवरी 2003

भारत में वर्तमान में सुर्खियों में आई ‘राष्ट्रीय जल ग्रिड’ की संकल्पना कोई नई चीज नहीं है। सर्वप्रथम देश की प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ने का विचार प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया ने सामने रखा था। राष्ट्रहित में आवश्यक है कि देश का प्रत्येक राज्य तथा विभिन्न क्षेत्रीय एवं राजनैतिक दल राष्ट्रीय जल ग्रिड निर्माण के लिए व्यापक सहमति एवं सहयोग की भावना प्रदर्शित करें।दिसम्बर 1971 एवं मार्च 1972 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) की एक टीम भारत में राष्ट्रीय जल ग्रिड निर्माण से संबंधित विभिन्न योजनाओं के औचित्य एवं आवश्यकता संबंधित पहलुओं का अध्ययन करने हेतु आमंत्रित की गई थी। टीम ने इस योजना के विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक प्रभावों एवं लाभों का मूल्यांकन क्षेत्रीय सर्वेक्षण के आधार पर प्रस्तुत की थी जिसमें कहा गया था ‘भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास एवं वृद्धि के समक्ष आगामी 30 वर्षों के दौरान जल-संकट की समस्या होगी। भविष्य में जल की माँग पर ध्यान देने से सन् 2000 तक राष्ट्रीय जल ग्रिड की अधिक आवश्यकता होगी। इस जटिल तथा कठिन खोज की प्रारंभ करने में अधिक समय बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।’

कहने का तात्पर्य यह है कि भारत में वर्तमान में सुर्खियों में आई ‘राष्ट्रीय जल ग्रिड’ की संकल्पना कोई नई चीज नहीं है। सर्वप्रथम देश की प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ने का विचार प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया ने सामने रखा था। उनके विचार के फलस्वरूप ही आजादी के समय यह तय किया गया था कि देश के विभिन्न भागों को बाढ़ एवं सूखे से निजात दिलाने के लिए भारत की प्रमुख नदियों को जोड़ा जाएगा। आजादी के 55 वर्ष बाद भी यह महायोजना क्रियान्वित नहीं हो पाई है। 1960 के दशक में दस्तूर ने देश की प्रमुख नदियों को जोड़ने की परिकल्पना को आगे बढ़ाया। इसके बाद 1972 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री के.एल. राव ने गंगा एवं कावेरी नदी को 2640 कि.मी. लंबी लिंक नहर से जोड़ने की एक स्पष्ट योजना प्रस्तुत की। इसके बाद इस संबंध में अनेक कमेटियाँ गठित की गईं लेकिन परिणाम शून्य ही रहा। छठी पंचवर्षीय योजना में इस योजना पर पुनः विचार किया गया। मोरारजी देसाई सरकार के कार्यकाल में इस दिशा में कुछ पहल की गई लेकिन जल्द ही इस सरकार के पतन के बाद यह योजना फिर से ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

आजादी के 55 वर्षों बाद भी देश में कालाहांडी जैसे क्षेत्र हैं जहाँ भूख से मौत होना आम बात है यद्यपि सरकार इन मौतों को भूख से हुई मौत मानने को तैयार नहीं है। इस वर्ष भी पलामू (झारखंड), शिवपुरी (मध्य प्रदेश) तथा बारां (राजस्थान) आदि जनपदों में भूख से हुई मौत की घटनाओं ने अखबारों को सुर्खियाँ प्रदान की। सच्चाई कुछ भी हो, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश का एक बड़ा भू-भाग प्रतिवर्ष सूखे की समस्या से ग्रस्त रहता है। इसके विपरीत कुछ हिस्से प्रायः बाढ़ के कारण जान-माल की हानि उठाते रहते हैं। अर्थात भारत में जल का प्रकृति-वितरण समान नहीं है। एक ओर जहाँ पूर्वोत्तर भारत यथा—असम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल एवं पश्चिमी घाट के क्षेत्रों में 200 से.मी. वार्षिक से अधिक वर्षा होती है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, कच्छ एवं सौराष्ट्र क्षेत्र तथा पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित वृष्टिछाया प्रदेश में 10-50 से.मी. तक ही वर्षा होती है। फलस्वरूप देश के एक भाग में जलाधिक्य बना रहता है तो दूसरे में अभाव।

भारत का समस्त भू-भाग प्रतिवर्ष वर्षा से लगभग 400 बिलियन क्यूबिक मीटर (बी.सी.एम.) वर्षा प्राप्त करता है जिसका लगभग 75 प्रतिशत मानसून के तीन महीनों में ही प्राप्त हो जाता है। इसमें भी अधिकांश वर्षा 100 घंटों की अवधि में प्राप्त हो जाती है। अधिकांश जल के तेजी से बह जाने, भूमिगत हो जाने एवं त्वरित वाष्पीकरण (उच्च तापमान के कारण) के कारण अनुमानित जल संसाधन 1900 बी.सी.एम. ही प्राप्त है। इसका दो-तिहाई भाग गंगा, बह्मपुत्र, यमुना, मेघना, थाले द्वारा आपूरित किया जाता है जो देश के लगभग एक-तिहाई भौगोलिक क्षेत्रफल में विस्तृत है। देश की विशालता एवं भौगोलिक संरचना का भारत के जल संसाधन वितरण पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। भारत के उत्तर में हिमाच्छादित हिमालय की चोटियों से निकालकर गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि अनेक सदावाही नदियों से प्रचुर मात्रा में जल की प्राप्ति होती है। इसलिए वर्षाकाल में यहाँ प्रायः जलाधिक्य हो जाता है। समन्वित जल प्रबंधन न होने के कारण अधिकांश जल बहकर समुद्र में चला जाता है। साथ ही इन नदियों की गति भी तेज है जिससे ये मृदा अपरदन द्वारा प्रतिवर्ष अरबों रुपए की आर्थिक क्षति करती है। 

राष्ट्रीय जल ग्रिड के संभावित प्रभाव एकदम स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इसके द्वारा देश को सूखे एवं बाढ़ की आपदाओं से मुक्ति मिलेगी। खाद्यान्न एवं अन्य कृषि उत्पादों में वृद्धि होगी। अतिरिक्त जल विद्युत का उत्पादन किया जा सकेगा जिससे देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी।इसके विपरीत प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ वर्षा पूरित हैं। इनमें वर्षाकाल में तो प्रचुर जल रहता है लेकिन वर्षारहित दिनों में ये लगभग सूख जाती हैं जिस कारण सिंचाई एवं पेयजल का संकट गहरा जाता है। पश्चिमी भारत एवं मध्य भारत की नदियाँ भी वर्षा पूरित ही हैं। देश में निरंतर आने वाली बाढ़ एवं सूखा इस बात को प्रदर्शित करते हैं कि हम अपने जल-संसाधनों का समुचित प्रबंधन करने में असफल रहे हैं। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद देश को 14 अगस्त के अपने प्रथम सम्बोधन में महामहिम राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम ने इस बात पर बल दिया था कि ‘देश को सूखा एवं बाढ़ से छुटकारा दिलाने के लिए प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ा जाना चाहिए।’ इसके पश्चात भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न राज्यों के मध्य जल-बंटवारे को लेकर बढ़ते विवाद के मद्देनजर केंद्र सरकार को 30 सितंबर, 2002 को निर्देश दिया कि देश भर की नदियों को आपस में जोड़ने के लिए सभी जरूरी उपाय किए जाएँ तथा दस वर्षों के अंदर देश भर की नदियों को आपस में जोड़ने का काम पूरा कर लिया जाए। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने संसद में सुझाव दिया है कि वह संविधान की प्रथम अनुसूची की 56वीं प्रविष्टि के तहत कानून बनाए और यह सुनिश्चित करें कि इस योजना को पूरा करने में कोई भी राज्य इंकार या आपत्ति जाहिर न करें।

संकल्पना
जलाभाव एवं जलाधिक्य वाले स्थानों में समुचित जल प्रबंधन करना। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में कृषि सिंचाई हेतु जलापूर्ति तथा जलाधिक्य (वर्षाकाल में) वाले क्षेत्रों के अतिरिक्त जल का कृत्रिम जलाशयों में संचय, जो अनुमानतः 2,25,000 मिलियन घनमीटर है।

1. सूखाग्रस्त क्षेत्रों की 35 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि की सिंचाई सुविधाएँ सृजित करके उत्पादन बढ़ाना।
2. जल ग्रिड के अन्तर्गत बनने वाले बाँधों से 34,000 मेगावाट का अतिरिक्त विद्युत उत्पादन करना।

परियोजना के संघटक
राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) द्वारा तैयार इस परियोजना के 2 प्रमुख संघटक निम्न हैं : 

1. उत्तर के नदी-बेसिनों को दक्षिण के नदी-बेसिनों से जोड़ना।
2. पूरब के बेसिनों को पश्चिम के बेसिनों से जोड़ना।
इसके द्वारा भारत के पूरब से पश्चिमी राजस्थान के शुष्क भागों, गुजरात के कच्छ एवं सौराष्ट्र तथा उत्तर से दक्षिण में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु के शुष्क भागों तक जल पहुँचाया जा सकेगा। राष्ट्रीय जल ग्रिड के इन दो के अतिरिक्त अन्य कुछ गौण संघटक भी हैं। उदाहरणार्थ पश्चिम तटीय मैदान की नदियों का जल सुरंगों द्वारा पश्चिम घाट के पूर्व में स्थित वृष्टिछाया प्रदेशों में पहुँचाया जाएगा।

बाधाएँ एवं समस्याएँ
राष्ट्रीय जल ग्रिड परियोजना की राह में अनेक रोड़े हैं। यह अत्यंत खर्चीली परियोजना है। 18 नवंबर, 2002 को लोकसभा में दिए गए एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री अर्जुन चरण सेठी ने बताया कि देश की बड़ी नदियों को आपस में जोड़ने पर वर्ष 2002 के मूल्य स्तर पर पाँच लाख साठ हजार रुपए की लागत आएगी। यह एक विशाल राशि है जिसे जुटाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के लिए भारत सरकार ने विशाल राशि जुटाने में जिस इच्छाशक्ति, सूझबूझ एवं प्रबंधन का परिचय दिया है, उसे देखकर लगता है कि सरकार इस राशि को जुटाने में कामयाब होगी। एक अन्य समस्या यह है कि विभिन्न राज्यों में प्रमुख नदियों के जल को लेकर आपसी विवाद होते रहे हैं जो अभी भी जारी हैं, यथा—कावेरी जल विवाद। 

राज्यों में नदी जल को लेकर वोटों की राजनीति होती है। कोई भी राज्य अतिरिक्त जल दूसरे राज्य को नहीं देना चाहता। ऐसे में राष्ट्रीय जल ग्रिड परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए विभिन्न राज्यों एवं राजनीतिक दलों के मध्य व्यापक सहमति अनिवार्य है। 20 नवंबर को संसद में जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि ‘देश को सूखे से स्थायी रूप से निजात दिलाने के लिए प्रमुख नदियों को जोड़ने के मुद्दे पर युद्धस्तर पर विचार किए जाने की आवश्यकता है’, उन्होंने यह वादा भी किया कि इसके लिए धन की कमी नहीं आने दी जाएगी इसके तुरंत बाद विपक्ष की नेता श्रीमति सोनिया गाँधी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। इससे लगता है कि इस मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों में सहमति बनाई जा सकती है।

अन्य बाधाएँ एवं समस्याएँ भी इस परियोजना से संबंधित हैं। यथा, देश की विषम भौगोलिक दशाएँ, परियोजनान्तर्गत निर्मित जलाशयों एवं बाँधों के कारण उत्पन्न विस्थापन एवं पर्यावरण संबंधी समस्याएँ। 

लेकिन उचित प्रबंधन एवं इच्छाशक्ति के सामने ये समस्याएँ घुटने टेकने पर विवश होंगी। रही परियोजना लागत के अधिक होने की बात, तो इस संबंध में उल्लेखनीय है कि यह राशि (560000 करोड़ रुपये) सूखा एवं बाढ़ राहत पर हर साल होने वाले खर्च को देखते हुए अधिक नहीं है।

स्वरूप
केंद्र सरकार देश भर में 30 ऐसी नदियों की पहचान की है जो एक से अधिक राज्यों से होकर गुजरती हैं। राष्ट्रीय जल ग्रिड के तहत देश की प्रमुख नदियों का ‘गलहार’ बनाया जाएगा अर्थात उन्हें लिंक नहरों द्वारा एक-दूसरे से जोड़ा जाएगा। इससे भारत के मानचित्र पर जो दृश्य उभरेगा वही ‘राष्ट्रीय जल ग्रिड’ होगा। राष्ट्रीय जल ग्रिड के तहत कुछ छोटी-छोटी योजनाएँ तो पूर्ण भी हो चुकी हैं जिनमें प्रमुख हैं : 

1. पेरियार विशाखन (डाइवर्जन) योजना, 
2. पेराम्बीकुलम अलियार परियोजना, 
3. कुर्नूल-कुड्प्पा नहर परियोजना, 
4. इन्दिरा गाँधी नहर (राजस्थान नहर) परियोजना।

कुछ निर्माणाधीन परियोजनाएँ
1. राजस्थान नहर का विस्तार, 
2. व्यास-सतलुज लिंक, 
3. रामगंगा से गंगा में विशाखन।

परियोजनाएँ जिनका निर्माण किया जाना है :
1. गंगा-कावेरी लिंक परियोजना, 
2. ब्रह्मपुत्र-गंगा लिंक नहर, 
3. नर्मदा-गुजरात तथा पश्चिम राजस्थान लिंक नहर परियोजना, 
4. चम्बल राजस्थान लिंक।

गंगा-कावेरी लिंक राष्ट्रीय जल ग्रिड का सर्वप्रमुख संघटक होगा जिसकी कुल लंबाई 2640 कि.मी. होगी। इसके द्वारा गंगा नदी के मानसूनकालीन अतिरिक्त जल को पटना के पास से गंगा-कावेरी लिंक हेतु उठाया जाएगा तथा सोन, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा एवं पेन्नार घाटियों के सहारे कावेरी बेसिन तक पहुँचाया जाएगा। यहाँ से (पटना के पास से) गंगा के 1680 क्यूमैक्स जल को लगभग 150 दिनों (मानसूनकालीन) हेतु उठाया जाएगा। इसमें से 290 क्यूमैक्स जल की आपूर्ति दक्षिणी उत्तर प्रदेश तथा दक्षिणी बिहार के गंगा बेसिन में स्थित सूखाग्रस्त क्षेत्र को की जाएगी। शेष जल राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदश पहुँचाया जाएगा। गंगा जल को कावेरी तक लाने हेतु विन्ध्य पर्वत को पार करना होगा। इसके लिए गंगा जल को अधिकतम 550 मीटर तक ऊपर उठाना होगा। नर्मदा-सोन जल विभाजक तक सोन के सहारे निर्मित लिंक द्वारा जल प्रवाहित किया जाएगा। सोन लिंक से जल को बारगी जलाशय में संचित किया जाएगा जो नर्मदा पर लगभग 425 मी. की ऊँचाई पर मध्य प्रदेश के मांडला-जबलपुर में बनाया गया है। यहाँ से जल को वेनगंगा, प्राणहिता तथा गोदावरी के सहारे निर्मित जलाशय से होकर कृष्णा एवं पेन्नार नदियों को पार करके कावेरी नदी में उतारा जाएगा।

प्रभाव
राष्ट्रीय जल ग्रिड के संभावित प्रभाव एकदम स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। इसके द्वारा देश को सूखे एवं बाढ़ की आपदाओं से मुक्ति मिलेगी। खाद्यान्न एवं अन्य कृषि उत्पादों में वृद्धि होगी। अतिरिक्त जल विद्युत का उत्पादन किया जा सकेगा जिससे देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी। देश की चारों दिशाओं—उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम के बीच की दूरी घटेगी। सस्ती एवं पर्यावरण-मित्र जल परिवहन व्यवस्था का विकास होगा। राष्ट्रीय जल ग्रिड भू-राजनैतिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण होगा जो देश के विभिन्न भागों में सैन्य आवागमन हेतु भी सुलभ होगा जिससे आतंकवादी गतिविधियों पर भी अंकुश लग सकेगा।

अन्य देशों में प्रयोग
अंतर-बेसिन जल-स्थानांतरण परियोजनाएँ कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, मेक्सिको, स्पेन, चीन एवं ऑस्ट्रेलिया में भी अस्तित्व में है तथा कुछ जगह ये योजनाएँ तैयार की जा रही हैं। इन देशों में नदियों को सफलतापूर्वक एक-दूसरे से जोड़ा गया है। फलस्वरूप कई सूखे इलाकों को हरा-भरा बनाने में सफलता मिली है। रूस ने जब साइबेरिया की नदियों को नहरों से मैदान में लाने की कोशिश की तो आर्थिक बर्बादी के साथ-साथ पर्यावरण एवं जीव-जंतुओं को भी भारी नुकसान पहुँचा। लेकिन रूस की परिस्थितियाँ अन्य देशों एवं भारत से भिन्न थीं। वहाँ की नदियाँ वर्ष के अधिकांश महीनों में जम जाती हैं। फलस्वरूप जल ग्रिड की वहाँ दुर्गति हुई।

भारत में जल ग्रिड की अवधारणा नई नहीं है। पहले से ही पश्चिमी यमुना नहर, एवं आगरा नहर हिमालय से पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के मैदानों में शताब्दियों से जल परिवहित कर रही हैं। इंदिरा गाँधी नहर परियोजना भी इसका अच्छा उदाहरण है।

विश्लेषण
राष्ट्रीय जल ग्रिड को लेकर कई आपत्तियाँ भी हैं। मुख्य आपत्ति जलाधिक्य वाले राज्यों की है। इन राज्यों का कहना है कि उनके पास जलाधिक्य नहीं है। यदि उन्हें केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक वित्तीय मदद दी जाए तो वे जल का समुचित उपयोग कर सकती हैं। इसलिए ये राज्य अंतर-बेसिन जल-हस्तांतरण के मूल विचार से सहमत नहीं हैं। इन राज्यों को स्वतंत्र एवं स्वस्थ समझौता-वार्ताओं द्वारा तैयार किया जा सकता है ताकि ये राष्ट्रहित में अधिशेष जल के हस्तांतरण को तैयार हो जाएँ। बदले में इन राज्यों को आर्थिक सहायता एवं कृषि उत्पादन एवं सृजित जलशक्ति में एक निश्चित अंश प्रदान करके क्षतिपूर्ति की जा सकती है।

परियोजना के कुछ विरोधियों का मानना है कि यह परियोजना भविष्य की सिंचाई आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जा रही है जबकि जल-उपलब्धता को बढ़ाने एवं सुधारने के अन्य उपाय भी हैं जो इस खर्चीली परियोजना की अपेक्षा मितव्ययी एवं पर्यावरण-मित्र भी सिद्ध होंगे। यथा, उचित जल-प्रबंधन आर्थिक रूप से महंगी इस ग्रिड व्यवस्था से अधिक लाभदायक होगा।परियोजना के कुछ विरोधियों का मानना है कि यह परियोजना भविष्य की सिंचाई आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जा रही है जबकि जल-उपलब्धता को बढ़ाने एवं सुधारने के अन्य उपाय भी हैं जो इस खर्चीली परियोजना की अपेक्षा मितव्ययी एवं पर्यावरण-मित्र भी सिद्ध होंगे। यथा, उचित जल-प्रबंधन आर्थिक रूप से महंगी इस ग्रिड व्यवस्था से अधिक लाभदायक होगा। उनका मानना है कि वाष्पीकरण पर नियंत्रण, जल उपयोग क्षमता में सुधार एवं जल-पुनर्चक्रण व्यवस्था द्वारा माँग-प्रबंधन करके आवश्यक उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। परियोजना विरोधियों का मानना है कि जल ग्रिड पर भारी मात्रा में निवेश की अपेक्षा अन्य औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों में निवेश अधिक लाभकारी होगा। खाद्यान्न जरूरत को आयात द्वारा पूरा किया जा सकता है। लेकिन विरोधी यह भूल जाते हैं कि खाद्यान्न जरूरत के लिए विदेशों पर निर्भरता राष्ट्रहित में नहीं है। यह सामरिक दृष्टि से हानिकारक सिद्ध हो सकती है। हमें याद है कि गत शताब्दी के मध्य में अमेरिका से पी.एल.-480 फंड के अंतर्गत हमें मिलने वाली खाद्यान्न सहायता को उसने भारत को अपने पक्ष में झुकाने हेतु किस प्रकार प्रयोग करना चाहा था। वैसे भी वर्तमान खाद्यान्न व्यापार संपूर्ण विश्व की जनसंख्या की उदर-पूर्ति हेतु पर्याप्त नहीं है जबकि जनसंख्या में भी दिन-प्रतिदिन वृद्धि की प्रवृत्ति विद्यमान है। भारत जैसा विकासशील विशाल देश खाद्यान्न आवश्यकता हेतु अन्य देशों का मोहताज नहीं रह सकता हमें स्व्यं अपनी जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताअें को पूरा करने में समर्थ बनना होगा।

मानसून की आँख-मिचौली एवं वैश्वीकरण की चुनौतियों ने भारतीय कृषि पर दूरगामी एवं प्रतिकूल प्रभाव डाले हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि-भूमि में निरंतर कमी आ रही है। हरित-क्रांति के कारण कृषि योग्य भूमि में अधिकतम विस्तार हो चुका है। गत 50 वर्षों में भारत में कृषि योग्य भूमि में 13-14 गुना वृद्धि हो चुकी है जिसमें और वृद्धि की संभावना बहुत ही कम है। ऐसे में जल-उपलब्धता बढ़ाकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भूमि की उत्पादकता बढ़ाया जा सकता है। जल-उपलब्धता द्वारा ही सूखाग्रस्त क्षेत्रों, यथा, राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र एवं कच्छ तथा सौराष्ट्र क्षेत्र में कृषि भूमि का कुछ हद तक विस्तार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय जल ग्रिड के माध्यम से औद्योगिक गतिविधियों हेतु भी जल सुलभ हो सकेगा जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन एवं जल प्राप्ति से औद्योगिक गतिविधियों में पीछे छूट गए क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों को भी बल मिल सकता है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।

राष्ट्रीय जल ग्रिड की सफलता पर संदेह करने वालों को इन्दिरा गाँधी नहर (राजस्थान नहर) परियोजना से समझ लेना चाहिए कि यह परियोजना देश के लिए कितनी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी। राजस्थान के गंगानगर एवं जैसलमेर जनपद का जो क्षेत्र कभी बड़े-बड़े ‘बरखानों’ (रेत के टीले) का मैदान हुआ करता था, आज वहाँ हरे-भरे वन एवं खेत लहलहा रहे हैं साथ ही अनेक औद्योगिक गतिविधियाँ भी प्रारंभ हो सकी हैं। 

राष्ट्रहित में आवश्यक है कि देश का प्रत्येक राज्य तथा विभिन्न क्षेत्रीय एवं राजनैतिक दल राष्ट्रीय जल ग्रिड निर्माण के लिए व्यापक सहमति एवं सहयोग की भावना प्रदर्शित करें। निस्संदेह राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के साथ-साथ राष्ट्रीय जल ग्रिड परियोजना भी देश के आर्थिक विकास का साधन सिद्ध होगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं) 

Saturday, May 26, 2018

कहाँ मजहब समझता हूं

मैं परिंदा हूँ, नही मज़हब समझता हूं।
बंटवारे की मगर बातें,मैं सब समझता हूं।

Monday, May 21, 2018

साभार

दिवान गिदुमल और उनकी बहादुर बेटी

सिंध की धरती पर सदैव अजेय रहने वाले हिन्दुओं को बुद्धों के विश्वासघात के कारण पहली हार मुहम्मद बिन कासिम से राजा दाहिर को मिली। अपने पिता की हार और अपने राज्य की तबाही का बदला राजा दाहिर की वीर बेटियों ने उसी के बादशाह से अपने ही सेनापति को मरवा कर लिया था। राजा दाहिर की पुत्रियां इतिहास में इस अमर बलिदान के लिए अमर हो गई। सिंध का अंतिम शासक मीर था। मीर को पता चला की उसके हिन्दू दीवान गिदुमल की बेटी बहुत खुबसूरत है। मीर ने गुदुमल के घर पर उसकी बेटी को लेने की लिए डोलियाँ भेज दी। बेटी खाना खाने बैठ रही थी तो उसके पिता ने बताया की यह डोलियाँ मीर ने तुम्हे अपने हरम में बुलाने के लिए भेजी है। तुम्हें अभी निर्णय करना है। यदि तुम तैयार हो तो जाओ। पिता के शब्दों में निराशा और गुस्सा स्पष्ट झलक रहा था। परन्तु स्वाभिमान और धर्मरक्षा से सुशोभित दिवान की बेटी न डरी न घबराई। उसने फौरन अपना निर्णय सुना दिया “आप अभी तलवार लेकर मेरा सर काट दीजिये! जाने का प्रश्न ही नहीं उठता।” पिता को अपनी संस्कारी लड़की से ऐसा ही उत्तर मिलने का पूरा विश्वास था। बिना किसी संकोच के पिता ने तलवार उठाई, भूखी बेटी ने सर झुकाया और बाप की तलवार ने अपना काम कर दिया। वह पिता जिसने बड़े लाड़ प्यार से अपनी बेटी को जवान किया था। एक क्षण के लिए भी न रुका। परिणाम यह हुआ कि मीरों ने दीवान गिदुमल को बर्बाद कर दिया।

दिवान गिदुमल और उनका परिवार इतिहास में अपने धर्म और स्वाभिमान कि रक्षा के लिए राजा दाहिर के बलिदानी परिवार के समान अमर हो गया।

1200 वर्षों में न जाने कितने घर आक्रमणकारियों ने बर्बाद कर दिए। आज भी उनकी अमर गाथा ठंडी रगों में लहू को उबाल देने वाली है। मातृभूमि और स्वाभिमान के लिए अमर बलिदान देने वाले वीरों को कोटि कोटि प्रणाम।

डॉ विवेक आर्य