Tuesday, November 29, 2011

काला धन या कला धन....?

देश में आजकल काला धन चर्चा में है. बड़ी बड़ी बाते हो रही है. रामदेव और आडवाणी जी विरोध में ताल थोक रहे है कि विदेश से काला धन वापस लाया जाये. सरकार के पसीने छूट रहे है, उसे आशंका है कि देश कि जनता कही इसकी भारी कीमत न वसूल कर ले...चुनाव में.

काला धन क्यों उत्पन्न हो गया इससे जनता को कुछ खास लेना देना नहीं है. कुछ अ[वादों को छोड़ दे ( नेताओं के पैसे को ) तो विदेश में जमा अधिकांश काला धन टैक्स व्यवस्था में अन्तर्निहित खामियों के कारन पैदा हुवा है..ये उस समय में इकठ्ठा हुवा जब फेरा जैसे कानूनों का दौर था.टैक्स डरे बहुत ज्यादा थी.सुविधाओं और प्रोत्साहन के नाम पर बाबुओं कि दुत्कार के आलावा कुछ नहीं था.. ऐसे में अपनी मेहनत कि कमाई कोई टैक्स के रूप में क्यों देना चाहेगा . नतीजा काला धन के रूप में आया..हम इसे कला धन भी कह सकते है.. क्योंकि इसे इसके मालिकों ने अपनी कला से कमाया था जिसे वे ऐसी निकम्मी सरकार को नहीं देना चाहते थे जो बदले में उनको कोई भी सुविधा न देती हो..जिसके नेता चोर हो. और इतना ही नहीं गोपनीयता के नाम पर उनके सारे काले कारनामों को सुरक्षा का मजबूत आवरण उपलब्ध हो..घोटाले बाज नेताओं का मकसद ही जनता कि गाढ़ी कमाई को चाट कर जाना रहा हो..

विदेश में जमा काले धन को दो वर्गों में बांटा जा सकता है.
१. ऐसा धन जो ऊंची टैक्स दरो से बचने के लिए विदेश में जमा किया गया है..यह मुख्य रूप से व्यवसाइयों एवं उद्योगपतियों का पैसा है.

इस पैसे को विदेश से भारत लाकर आज कि टैक्स दरों के हिसाब से टैक्स काटकर इसके मालिको को सौंप देना चाहिए ताकि यह पैसा देशी अर्थव्यस्था को मजबूती प्रदान कर इसके साथ यह शर्त होनी चाहिए कि इस पैसे का उपयोग ये लोग ग्रामीण उद्योगीकरण, ग्रामीण सड़को एवं परिवहन के उन्नतीकरण एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विद्युतीकरण में करेंगे.

२. दूसरी श्रेणी में ऐसा पैसा है जो नेताओं ने इस देश को लूटकर कमाया है. ऐसे धन को वापस लाकर राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर देना चाहिए. देश को लूटने वाले इन नेताओं के विरुद्ध कठोर क़ानूनी कार्यवाही कि जनि चाहिए. इस पैसे का उपयोग देश में आधारभूत सरंचना को मजबूत करने, कृषि अर्थव्यवस्था में अनुसन्धान एवं गरीबी उन्मूलन योजनाओं पर खर्च करना चाहिए.

उपरोक्त के अतिरिक्त काले धन का एक और वर्ग है जिस के बारे में कोई बात करने को तैयार नहीं है..यह है इस देश के मठ, मंदिर मस्जिद,आश्रमों चर्चों और गुरद्वारों में दबा अथाह धन का भंडार..सरकार सभी दलों की सहमति से देश के सभी धार्मिक स्थानों को वैष्णो देवी मंदिर की तर्ज पर ट्रस्टों को सौंप दे ताकि वहां चल रही धार्मिक लूट को रोक कर इस पैसे का धार्मिक स्थानों के विकास एवं सञ्चालन के साथ साथ देश की आर्थिक उन्नति के लिए भी प्रयोग किया जा सके. ऐसा करने से इन धार्मिक स्थानों पर कार्यरत लोगो को तो सरकारी सरंक्षण मिलेगा ही और बहुत से लोगो को भी वहां रोजगार दिया जा सकता है..

कुंवर सत्यम..

Wednesday, November 23, 2011

ईंट की गाड़ी.

गुल्ली डंडा ,

पिट्ठू जिंदाबाद.

गोल का टोरा..
चोट गोली पिल..
रेत से वो घर बनाना.
कंदूरी से भैंस -बैल बनाना.

ईंट की गाड़ी.
मुह से घुरघुर
करके गाड़ी चलने की,
आवाज निकालना..
जितना आनंद देता था
उतना आज सचमुच की लग्जरी
गाड़ी चलाने में भी नहीं आता.

क्यों नहीं बचपना
जवान हो जाता
अपनी उसी सादगी के साथ.

कुंवर सत्यम.

Sunday, November 13, 2011

TET EXAM...

केंद्र के साथ साथ राज्यों में भी TET परीक्षा लागू कर दी गई है. बेरोजगारी का आलम है की आप किसी भी चीज के लिए कोई परीक्षा पद्दति लागु कर दे तो दो चार लाख की भीड़ आराम से मिल जाएगी. जिस किसी भी महाशय ने शिक्षकों की योग्यता परखने के लिए टेट का सुझाव दिया होगा वह भी अपने आप को धन्य मान रहा होगा की उसका दिया सुझाव लागू हो गया है..

टेट की नौटंकी की कीमत लाखों बेरोजगार युवक आर्थिक और मानसिक दोनों प्रकार से चुकायेंगे. टेट एक नौटंकी परीक्षा है यह किसी रोजगार की गारंटी नहीं है. tet का अर्थ है teacher 's elegibility test अर्थात अध्यापक पात्रता (योग्यता) परीक्षा . यह परीक्षा पास करने वालो को योग्यता का प्रमाण पत्र मिलेगा जो इस बात का प्रमाण होगा का certificate धारक अध्यापक नियुक्त किये जाने के योग्य है..लेकिन उसकी योग्यता का यह प्रमाण पत्र उसे जीवनभर कही अध्यापक नियुक्त करवा सकेगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है.यानि कि जीवन भर युवक को हताशामय जिंदगी जीने की गारंटी जरुर मिलेगी...धारक को हमेशा एक बात सालती रहेगी की योग्य होने के बावजूद भी उसके पास नौकरी नहीं है.

टेट का दूसरा पहलु यह है की टेट की परीक्षा पास करने के बाद भी प्रमाण पत्र धारक को नोकरी पाने के लिए दोबारा परीक्षा पास करनी होगी. जब दोबारा, तिबारा परीक्षा पास करके ही नोकरी मिलनी है तो टेट के नाम पर युवा शक्ति की योग्यता का मखौल क्यों.?

हम सब जानते है की आज B.Ed. करने के नाम पर हजारो संस्थान कुकुरमुत्तों की भांति सड़क के दोनों किनारों पर उग आये है. वहां बी.एड. की डिग्री कैसे मिलाती है यह किसी से छुपा नहीं है..उत्तर प्रदेश सरकार ने विशिष्ट बी.टी.सी की शुरुवात की थी ..जिसने प्रदेश में हजारो युवको को रोजगार तो दिया लेकिन उनकी योग्यता आंकने के लिए कोई परीक्षा क्यों नहीं ली गई ? इस बात पर कोई प्रशन कही किसी ने नहीं पूछा. जब यही सब होना है तो फिर टेट का नाटक क्यों? और अगर टेट परीक्षा से योग्यता की परीक्षा होनी है ( जो संभव है ) तो फिर टेट पास करने के बाद भी नौकरी की गारंटी क्यों नहीं.?
सवाल यह है की युवा शक्ति की शक्ति का मखौल कब तक उड़ाया जाता रहेगा..क्या वास्तव में कोई राजनितिक दल युवा शक्ति की शक्ति का राष्ट्रहित में सदुपयोग कर पायेगा.

कुंवर सत्यम.

Tuesday, November 1, 2011

दिग्विजय को चाहिए चंदे का हिसाब..

दिग्विजय सिंह अन्ना आन्दोलन के धुर विरोधी है. उन्होंने हमेशा आन्दोलन की निंदा की है. उनका हर संभव प्रयास आन्दोलन को किसी भी प्रकार से बदनाम करने का रहा है. अन्ना आन्दोलन को उन्होंने चवन्नी का दान नहीं दिया. लेकिन उन्हें आन्दोलन को मिले चंदे का हिसाब चाहिए. एक-एक पाई का हिसाब चाहिए दिग्विजय को.. देश की जनता , जिसने १५ दिन के अन्दर आन्दोलन को लगभग ३ करोड़ रुपये का चंदा दिया, उसने कभी आन्दोलन से चंदे के पैसे का हिसाब नहीं माँगा. जनता को अपने सामाजिक नेतृत्व पर भरोसा है इसीलिए उसने आन्दोलनकारियों से हिसाब नहीं माँगा.
अच्छा रहता की दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में हुए commanwealth games में हुए खर्च का हिसाब शीला दीक्षित से माँगा होता. कांग्रेस को मिले राजनितिक चंदे का कभी हिसाब माँगा होता. अच्छा रहता उन्होंने दिल्ली में बन रहे सिग्नेचर ब्रिज पर हो रही लूट का दिल्ली की मुख्यमंत्री से हिसाब माँगा होता.
ऐसे बहुत से हिसाब है जो यदि दिग्विजय सिंह ने मांगे होते तो उनके साथ-साथ कांग्रेस की छवि भी सुधरी होती..

कुंवर सत्यम

Saturday, October 29, 2011

जिन्ना भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार नहीं थे.

अन्ना के संघ से संबंधों पर दिग्विजय सिंह ने ऐसे हाय तौबा मचा रखी है जैसे कि संघ ही अल-कायदा हो.
यह समझ से परे है कि दिग्विजय सिंह ओसामा बिन लादेन जैसे कुख्यात आतंकवादी को तो ओसामा जी कहकर संबोधित करते है और संघ से इतनी चिढ रखते है. देश का पढ़ा लिखा मुस्लिम वर्ग भी समझता है कि क्या संघ उनके खिलाफ है.? दिग्विजय सिंह की यह हाय तौबा मुस्लिम वोटो के लिए एक नौटंकी है.. लेकिन कांग्रेस इस समय आपातकाल के समय की लोकप्रियता के स्तर से भी न्यूनतम स्तर पर है..
दिग्विजय सिंह को शुभ कामनाये कि वह कांग्रेस की लोकप्रियता के गिरते ग्राफ को ऊपर उठा सके. इसके लिए जरुरी है कि उन्हें अपने बयानों को और ज्यादा घटियातम बनाना होगा.
आनेवाले दिनों में दिग्विजय सिंह कुछ और बयान दे सकते है...जैसे..

* जिन्ना भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार नहीं थे. मुस्लिम लीग कांग्रेस जितनी ही देशभक्त पार्टी थी. हिन्दू महासभा और संघ ने उसे विभाजन का मार्ग चुनने के लिए मजबूर किया था.

* आपातकाल लगने के पीछे संघ कि गतिविधियाँ जिम्मेदार थी. संघ ने इंदिरा जी कि हत्या का षड्यंत्र रचा था जिसकी खबर मिलने पर इंदिरा जी ने भय के कारण आपातकाल कि घोषणा की थी.

* भारत-पाक युद्धों के लिए संघ ही जिम्मेदार था. पाकिस्तान कि मंशा भारत पर आक्रमण करना नहीं था. क्योंकि संघ हिंदुस्तान के मुस्लिमो का कत्ले-आम करना चाहता था अतः उनकी रक्षा के लिए ही पाक ने भारत पर आक्रमण किया था.

* कारगिल युद्ध का षड़यंत्र तत्कालीन भाजपा सरकार ने अपनी लोक प्रियता बढ़ाने के लिए किया था. कश्मीर में उस समय पाकिस्तान कि और से कोई घुसपैठ नहीं हुई थी.. भाजपा ने जेलों में बांध पाकिस्तानी कैदियों को मारकर यह दिखाया था कि ये वह घुसपैठिये है जिनकी कारगिल युद्ध में मोत हुई है.

* भारतीय संसद पर हमला, मुंबई आतंकवादी हमलो, दिल्ली विस्फोटों के पीछे संघ परिवार का हाथ है.. आगामी चुनावों को देखते हुए संघ देश के विभिन्न हिस्सों में विस्फोटों कि साजिश रच रहा है.

* संघ मेरी हत्या का षड्यंत्र रच रहा है. मेरे ऊपर हमला हो सकता है. इसके लिए संघ जिम्मेदार होगा..

* कोमनवैल्थ खेलों में हुए घोटाले की लिए भाजपा सरकार जिम्मेदार है. भाजपा सरकार के समय में भारत को इन खेलो की मेजबानी सौंपी गई थी. तभी इस घोटाले की नीव पड़ गई थी. कलमाड़ी निर्दोष है.

इस प्रकार के बयान आने वाले दिनों में यदि आपको सुने पड़े तो आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए..

कुंवर सत्यम.

Friday, October 28, 2011

मनु अभी जिन्दा हैं.


मनु अभी जिन्दा हैं..राजा ने उन्हें आखिरकार जिन्दा कर ही दिया..

मायावती बहन ने मनु को इतनी गाली दे दी थी की उनकी मौत ही हो गई थी,, ऐसा लगने लगा था.अपने राजनितिक सफ़र को गति प्रदान करने के लिए मायावती जी के पास कोई मुद्दा नहीं था.. उनके पास यदि कुछ था तो वह था सदियों से दमित समाज को आत्मविश्वास से भर देने वाले कुछ नारे..तिलक,तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार..और मनु को ज्यादा से ज्यादा गलियों से संबोधित करना.. दलित वोट बैंक को संगठित करने के बाद मायावती ने सर्वसमाज की वैतरणी से राजनितिक दरिया को पार करके सिंहासन सुख चखा ...सर्वसमाज की बाते होने लगी तो मनु महाराज गौण हो गए.हम तो भूल ही गए थे मनु को..
  लेकिन अब महाराजा दिग्विजय सिंह ने मनु को पुनरजीवित  कर दिया है.मनु ने लगभग ३५० ईस्वी के आस पास कानून की पुस्तक मनुस्मृति की रचना की थी .इसमें उन्होंने जाति आधारित दंड संहिता की व्यवस्था की थी..मै समझता हूँ इस संदर्भ में अधिक गहराई में जाने की जरुरत नहीं है.
अब जब सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था तो राजा दिग्विजय सिंह को मनु की जरुरत महसूस हुई . दिग्विजय सिंह राजा है तो उन्होंने क़ानूनी सलाहकार की जरुरत पड़ती ही है. दिग्विजय सिंह बाबा रामदेव के व्यवसायिक रूप से चिढ़ते है, वे उन्हें दण्डित करना चाहते है. लेकिन गलती से आज भारत में लोक-तंत्र है अतः राजा साहब यूँ ही किसी को पकड़-कर दण्डित नहीं कर सकते है. ऐसे में वह सिर्फ किस स्थिति में किस व्यक्ति को क्या दंड दिया जाना चाहिए, यही व्यक्त कर सकते है. भारतीय लोक-तंत्र में दिग्विजय सिंह जी जैसे कुछ लोग राज-तंत्र के अंतिम स्तम्भ है. अतः इनका राज-धर्म बनता है की ये राज-तंत्र की आत्मा को जिन्दा रखे.यह काम सिर्फ बयानबाजी से संभव है.. और यह काम राजा साहब बखूबी कर रहे है. राजा साहब ने मनुस्मृति से संदर्भ देते हुवे कहा है की ' यदि कोई व्यक्ति सन्यासी के वेश में व्यवसाय करे तो राजा का धर्म है की वह उसके गले में भारी पत्थर बाँध कर उसे नदी में डूबा दे,."
दिग्विजय जी के राज-तंत्र में विरोधी आवाज के लिए कोई स्थान नहीं है..यही राजतन्त्र की वास्तविक आत्मा है. यदि दिग्गी हिंदुस्तान के वास्तविक राजा होते तो सबसे पहले RSS को नेस्तनाबूद कर दिया जाता.भाजपा सहित तमाम विपक्षी दलों को समाप्त कर दिया जाता.हिंदुस्तान में सिर्फ एक दल होता..कांग्रेस..
 रामदेव, अन्ना आदि कोई भी व्यक्ति यदि सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के खिलाफ बोलेगा तो उसे
येन-केन-प्रकरणेंन बदनाम करके ठिकाने लगाने के समस्त प्रबंध किये जायेंगे. दिग्गी साहब बखूबी जानते है की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से प्राप्त सत्ता में राजतंत्र की चासनी कैसे लगाई जा सकती है. सत्ता प्रतिष्ठान का प्रयोग लोकतंत्र को बंधक बनाने में कैसे किया जा सकता है , यह भी वह जानते है. जो भी लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना आदि के साथ खड़े होंगे, उनसे जुड़े सारे ऐसे दस्तावेज ढूंढ निकाले जायेंगे जो उन्हें नंगा कर सके.बस टिकट में २ रुपये बचा लेने तक की तुलना भी कलमाड़ी जैसे माननीयों के घपलों से कर दी जाएगी.
इस देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आज अगर कोई खड़ा है तो वह सोनिया जी और कांग्रेस है, ऐसा दिग्गी साहब का मानना है. यह सही भी है क्योंकि कई कांग्रेसी इस समय तिहाड़ में छुट्टियाँ बिता रहे है. कांग्रेस उन्हें जेल जाने से रोक तो नहीं सकती थी लेकिन उनके जेल जाने को राजनितिक रूप से भुनाया तो जा ही सकता है.. दिग्गी महाराज कलमाड़ी के लिए सार्वजनिक रूप से टीवी पार दुवा कर रहे है की वह अपने आप को निर्दोष साबित कर सके.

मैंने पहले भी कहा है की देश में दिग्विजय-वाद का उदय हो रहा है. दिग्विजय-वाद की आत्मा है- लोकतंत्र के साथ राजतन्त्र का काकटेल. इसमे हमें मनु की जरुरत हमेशा रहेगी ही. दिग्विजय-वाद कभी मनु को मरने ही नहीं देगा. अब हमें देखना यह है की हमेशा मनु की मुखर विरोधी रही बहन जी इस के साथ कैसे सामंजस्य बैठाती है.

भारत अब दुनिया में गांधीवाद के साथ-साथ दिग्विजय-वाद के लिए भी जाना जायेगा.

कुंवर सत्यम.

दिग्विजय- वाद का आगमन होने वाला है



दिग्विजय सिंह को इस देश के महानतम नेताओं में शामिल किया जायेगा.आये दिन वह जो बयान दे रहे है उनका संकलन करके गाँधी-वाद, मार्क्स-वाद आदि की भांति  दिग्विजय- वाद का आगमन होने वाला है. दिग्विजय-वाद में धारा के उलटे चलने की सीख निहित होगी. हमारी समझ बहुत छोटी है..सो हम अभी उनकी महानता का अंदाजा नहीं लगा सकते है..कबीर की उलटबांसियों की ही भांति  दिग्विजय सिंह जी के बयानों के भी कुछ विशेष अर्थ है जिसे हम मूर्ख-अज्ञानी लोग नहीं समझ सकते है..
गाँधी वाद हमें दुश्मन के ह्रदय परिवर्तन का दर्शन देता है..अगर कोई तुम्हारे एक गाल  पर थप्पड़ मारे  तो तुम दूसरा आगे कर दो..और जब दूसरे पर मारे तो पहला...यही क्रम लगातार तब तक दोहराते रहो जब तक उसके हाथ न दुखने लगे..यही वह ज्ञान है जो सहनशीलता की वृद्धि करता है..गाँधी जी कहते थे की पाप से घृणा करो पापी से नहीं..दिग्विजय सिंह जी ने इसका व्यवहारिक तोड़ दे दिया जब उन्होंने ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी कहकर संबोधित किया था..यानि आतंकवाद से घृणा करो आतंकी से नहीं..आखिर वो भी तो हम जैसे ही इन्सान है.दो चार दस निर्दोष लोगो को किसी आतंकवादी ने मार भी दिया तो क्या..? गलती तो किसी से भी हो सकती है..जो गलती नहीं करता वह सिर्फ भगवान ही हो सकता है..
यदि कोई आतंकवादी किसी आतंकी घटना में  पकड़ा जाता है तो उसे हमें उसे जेल में नहीं सडाना चाहिए बल्कि चार्ज शीट दायर करके उसे जमानत देकर उसके मानवाधिकारो का  सम्मान करना चाहिए. इतनी उदारता सिर्फ दिगविजयवाद की ही विशेषता हो सकती है. सुरेश कलमाड़ी जी एवं राजा जी जैसे प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञों की जगह तिहाड़ में नहीं होनी चाहिए. अमरीका ने उदरता  का परिचय देते हुवे रजत गुप्ता  को चार्ज शीट दायर करने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया है.. क्योंकि अमेरिका जानता है की रजत जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति की जगह जेल में नहीं होनी चाहिए ..... अमेरिका ऐसा सोच सकता  है क्योंकि वह अमेरिका है.. हम ऐसा नहीं सोच सकते  है क्योंकि हमारे पास सिर्फ एक ही दिग्विजय सिंह है ...लेकिन अब हम ऐसा सोच सकते है क्योंकि अब हमारे पास दिगविजयवाद है. हमें कलमाड़ी जैसी प्रतिभाओं का देश हित में लाभ उठाना चाहिए न की उन्हें जेलों में सड़ने के लिए छोड़ देना चाहिए.
देश की संसद पर बम फेंकने वाले "अफजल जी" जैसे महान लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करते हुवे उन्हें जमानत पर रिहा कर देना चाहिए. मै तो कहूँगा की उन्हें मेरे गृह जनपद प्रबुद्ध नगर से सांसद चुनाव भी लडवा देना चाहिए.
  आइये प्रणाम करते है भारत और  दुनिया को एक नई दृष्टि   " दिग्विजय वाद " देने के लिए श्री दिग्विजय सिंह जी को..

कुंवर सत्यम.

Thursday, October 27, 2011

महंगाई का अर्थशास्त्र..महंगाई का बम ..

आम भारतीय महंगाई का अर्थशास्त्र नहीं समझता है. आये दिन मीडिया में महंगाई को लेकर शौर मचता है. कांग्रेस के किसी प्रवक्ता से पूछो तो कहता है की ये वित्त मंत्री से सम्बंधित है अतः आप उन्ही से पूछो की महंगाई कब ख़त्म होगी. जैसे वित्त मंत्री विपक्ष के मंत्री हो. प्रणव मुखर्जी और यहाँ तक की मनमोहन सिंह देश के उच्च कोटि के अर्थशास्त्री है क्या वो नहीं जानते की महंगाई का मूल कारन क्या है.? यह विश्वास करने के कोई कारन नहीं है की ये दोनों ही महंगाई के कारणों एवं निवारण से अनभिज्ञ हैं.

मेरी अपनी सोच शायद छोटी हो लेकिन भारत जैसे विकाशशील देशों में महंगाई का कारन वैश्विक नहीं है. एक ऐसे देश में जहाँ वैश्विक आर्थिक मंदी भी अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए ज्यादा चिंता का कारन नहीं बन पाई हो महंगाई के कारणों को वैश्विक परिदृश्य से जोड़ना गले नहीं उतरता है.

अर्थशास्त्र मांग और पूर्ति के सिद्दांत का आंख बंद करके पालन करता है. फिर मांग चाहे वास्तविक हो या कृत्रिम..देश की जनसँख्या यदि आज की परस्थितियों में १.५ अरब के बजाय २.५ अरब भी हो तो देश का किसान उसका आसानी से पेट भर सकता है वह भी आज दिनांक २६ अक्तूबर २०११ की कीमतों से भी कम पर..बशर्ते मांग को अनार्थिक तरीको से बढाया न जाये.

मेरी एवं मुझसे अधिक आयु के लोग अच्छी तरह से जानते होंगे की ७० एवं ८० के दशक में सरकारी लेवी की पूर्ति के लिए सरकार किसानों से उनका अधिशेष उत्पादन जबरन खरीद लेती थी और किसानो की आड़ में मुनाफाखोरों द्वारा पूर्ति को कृत्रिम तरीके से प्रभावित करके मूल्य वृद्धि को रोक देती थी.यहाँ तक की कई बार तो किसानो द्वारा भविष्य की आवश्यकताओं के लिए संगृहीत अनाज भी सरकार छीन लेती थी और कुछ दिनों बाद किसानो को खुद भी महँगी दरों पर अनाज खरीदना पड़ता था..



वैश्विकरण की अंधी दौड़ में सामाजिक सरोकार इतने पीछे छूट गए है कि अब सरकार खुद ही व्यापारी की भूमिका में खड़ी हो गई और वह भी घ्रणित कमीसन खोर एजेंट के रूप में.

विशेष कर सन २००० के बाद सरकार ने खाद्य एवं अन्य दैनिक जरुरी उत्पादों की सरकारी जुआं-गिरी को संस्थागत रूप प्रदान कर दिया है. बाजार में खाद्य एवं जरुरी वस्तुओं की अनार्थिक मांग बढ़ने के सभी उपाय सरकार ने कर दिए है.

देश में प्रतिदिन बेतहाशा बढ़ती महंगाई का प्रमुख कारन देश में कमोडिटी एक्सचेंज की शुरुवात होना है. कमोडिटी एक्सचेंज में कमोडिटीज जैसे कच्चे तेल , खाद्य पदार्थ तथा सोना , चांदी जैसी वस्तुओं का व्यापर होता है. किसी वस्तु की आगामी भविष्य की कीमतों का अनुमान लगाकर उसकी खरीद बिक्री करना यानि फ्यूचर ट्रेडिंग का कार्य ही कमोडिटी बाजार की खाशियत है. यानि कमोडिटी मार्केट में वस्तुओं का भौतिक रूप में नहीं बल्कि उनकी कीमत का व्यापर होता है..इस प्रकार वस्तु की आपूर्ति का यहाँ कोई महत्व नहीं है..जितना है उससे कही ज्यादा मात्रा में वस्तुए बेचीं जा सकती है, खरीदी जा सकती है..यहाँ हर समय हर वस्तु की अप्रत्याशित मांग बनी रहती है अतः हरपल कीमते परिवर्तित होती रहती है..रिजर्व बैंक अपनी रेपो रेट,बैंक रेट,CRR आदि नियंत्रक गतिविधियों से भी कमोडिटी मार्केट में कीमत व्यापर को नियंत्रित नहीं कर सकता है.यहाँ लोग छः महीने से भी पहले किसी वस्तु की कीमत का अनुमान लगाकर उसकी खरीद बिक्री कर सकते है..एक प्रकार से कमोडिटी मार्केट कालाबाजारी के सरकारी बाजार है.

भारत में वैसे तो सन २००२ में कमोडिटी बाजार का प्रराम्भा हो गया था लेकिन यह सिर्फ सांकेतिक था.इसमें प्राय धातुओं का व्यापर होता था.२००३ में MCX भी शुरू हो गया था. लेकिन ३ मई २००५ से NCDEXAGRI देश में कृषिगत वस्तुओं का पहला सूचकांक है ..

एक अनुमान के अनुशार देश का कमोडिटी बाजार शेयर बाजार की तुलना में ५ गुना बड़ा है. २००५ में इसके शुरू होने से लेकर २००८-०९ तक कमोडिटी ट्रेडिंग में ३१ गुना वृद्धि दर्ज की गई है..

सत्ता के खेल में शामिल पक्ष हो या विपक्ष, अधिकांश लोग सरकारी कालाबाजारी के बाजार में शामिल है.

महंगाई का बम महंगाई को कम करने की जद्दोजहद के बीच ही अचानक फट पड़ा है..टीवी पर एक दो दिन बहसों का नहीं तू तू मै मै का दौर चलेगा. सब कुछ सामान्य हो जायेगा. न करे रुकेंगी न अर्थव्यवस्था की गति कम होगी.विपक्षी दलो के लोग फिर इंतजार करेंगे नए महंगाई बम के फटने का.. जिंदाबाद -मुर्दाबाद का दौर यूँ ही चलता रहेगा.


आम आदमी की बिना इलाज के वहीँ दूर गाँव में मौत हो जाएगी.

इति भारतम


मै समझता हूँ की अब एक आम आदमी भी समझ सकता है की कमोडिटी मार्केट के रहते हुवे क्या कोई उपाय है जो कथित महंगाई को रोक सके..



कुंवर सत्यम.


Wednesday, September 21, 2011

लोकतंत्र जिंदाबाद,जनता जिंदाबाद.

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष जरुरी होता है.लोकतंत्र में विपक्षी दल की भूमिका कंट्रोल रूम की भांति होती है. अगर किसी व्यवस्था का कंट्रोल रूम ठीक से काम न करे तो हम समझ सकते है कि कितनी समस्या हो सकती है. देश हितो के खिलाफ किसी मुद्दे पर विरोध दर्ज करना विपक्षी दल का राष्ट्र - धर्म होता है..अगर विपक्ष अपने कम में सफल नहीं होता है तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे का निशान माना जाना चाहिए. इसके दो ही अर्थ हो सकते है.. १. विपक्ष सत्ता के किसी भी प्रकार से प्रभाव में है..उसने या तो रिश्वत ली है अथवा राजनतिक लाभ लेकर लोकतान्त्रिक हितों को गिरवी रख दिया है. अथवा २. विपक्ष बहुत कमजोर है. इस समय देश में राजग प्रमुख विपक्षी गठबंधन है तथा भाजपा प्रमुख विपक्षी दल. विभिन्न अवसरों पर इसने अपना प्रबल विरोध दर्ज करके लोकतंत्र कि सेवा की है. और अपने आप को सिद्ध किया है. दर-असल हम लोग यह मन लेते है की देश में सिर्फ सत्ता-दल की ही भूमिका होती है..विपक्ष के पास कोई काम नहीं होता. हमारे अन्दर एक खूबी और है की हमें लोकतंत्र के स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं होता वरन हम जिस दल से भी जुडाव रखते है उसी के प्रवक्ता बन जाते है.अपनी पार्टी के कुकर्त्यों पर पानी डाल देना और दूसरी के अच्छे कार्यों को भी महत्वहीन करार देना हमारा पार्टी धर्म बन जाता है जिसका अधिकांश भारतीय जी-जान से निर्वाह करते है. छोटे छोटे मुद्दों को पार्टी से जोड़ कर आम आदमी भी ऐसे बयान जारी करता है जैसे वह उसका राष्ट्रीय प्रवक्ता हो. भले ही पार्टी में किसी भी स्तर पर उसकी व्यक्तिगत हैसियत कुछ भी न हो..मेरे कहने का अभिप्राय है की हर व्यक्ति अपनी पार्टी के लिए मनीष तिवारी बन जाना चाहता है..यह पृवृत्ति लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक संक्रमण का संकेत है. एक जागरूक लोकतंत्र-प्रेमी को पार्टी से ऊपर उठकर लोकतंत्र की रक्षा एवं राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए. भ्रष्टाचार इस समय एक राष्ट्रीय मुद्दा है.अन्ना आन्दोलन को अभी ज्यादा दिन नहीं हुवे हैं.पूरे देश को इस मुद्दे ने प्रभावित किया है.महंगाई की कोई सीमा रेखा नहीं है.उस पर वास्तविकता से बेखबर हमारे मंत्री महोदय कुछ गैर जिम्मेदाराना बयान जारी करके जले पर नमक छिड़कने का काम कर देते हैं..जैसे महंगाई बढने का प्रमुख कारण अन्य कारणों के साथ सरकार द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि अब ज्यादातर लोगो ने क्योंकि सब्जियां खानी शुरू कर दी है अतः मूल्य वृद्धि स्वाअभाविक है .इसी प्रकार एक कारण यह भी बताया गया है कि लोगो कि भोजन सम्बन्धी आदतें बदल रही है अतः खाद्य वस्तुओं कि कमी के कारण मूल्य बढ रहे है.. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो स्थिति यह है कि अन्ना आन्दोलन के बाद ऐसा लगता है सरकार यही तय नहीं कर पा रही है कि किसे भ्रष्ट माना जाए.रिश्वत देनेवाले को,लेने वाले को या फिर न लेने वाले को. अगर ऐसा नहीं होता तो" कैश फॉर वोट " कांड में सरकार सभी को एक तराजू में नहीं तोलती.भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुवा है कि रिश्वत खोरी का भांडाफोड़ करने वालों को सजा मिली हो.भाजपा के पूर्व सांसदों ने नुक्लियर डील मसले पर सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए मिले एक-एक करोड़ रूपये लेकर अगर अपनी जेबे गरम कर ली होती तो शायद सांसद रिश्वत-काण्ड कि हकीक़त से सारा देश वंचित रह जाता .अमर सिंह जी के राजनीतिक चरित्र को सारा देश जानता है.उनके काल कि किसी पोलिटिकल होर्स ट्रेडिंग में वह शामिल न रहे हो इस बात के सबूत नहीं हैं..लेकिन उनके साथ साथ उनकी असलियत को सामने वालो को जो इनाम मिला है.उसकी प्रशंशा में मेरे पास तो शब्द नहीं है.यह हमारे लोकतंत्र कि सेहत के लिए ठीक नहीं है. हमें दलगत सोच से ऊपर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी कि इस बात का समर्थन करना चाहिए कि उन्होंने उस समय के विपक्ष का नेता होने के नाते कुलस्ते एवं भगोरा द्वारा संसद में रिश्वत में मिले नोटों को दिखाने के काम के लिए खुद को जिम्मेवार मानकर सरकार से खुद को भी जेल में डालने कि मांग कर डाली.राजनितिक चश्मा लगाये हुवे लोगो को इसमें नोटंकी,ड्रामा या राजनितिक लाभ पाने कि आशा में किया जाने वाला प्रपंच दिख सकता है.लेकिन वास्तव में यह आडवानी जी कि लोकतान्त्रिक सोच को प्रतिबिंबित करता है.भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनकी रथ-यात्रा से वे भाजपा को कितना लाभ दिला पाएंगे यह मेरे चिंतन का विषय नहीं है.अडवानी जी रथ यात्रा द्वारा जनजागरण में माहिर है. लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राष्ट्रिय पहल कि घोषणा करके उन्होंने यह प्रमाणित कर दिया कि वह अपने विपक्ष-धर्म को बखूबी जानते हैं.माध्यम कोई भी हो लोकतंत्र को मजबूती मिलती रहनी चाहिए.लोकतंत्र जिंदाबाद,जनता जिंदाबाद. कुंवर सत्यम.