Wednesday, September 21, 2011

लोकतंत्र जिंदाबाद,जनता जिंदाबाद.

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष जरुरी होता है.लोकतंत्र में विपक्षी दल की भूमिका कंट्रोल रूम की भांति होती है. अगर किसी व्यवस्था का कंट्रोल रूम ठीक से काम न करे तो हम समझ सकते है कि कितनी समस्या हो सकती है. देश हितो के खिलाफ किसी मुद्दे पर विरोध दर्ज करना विपक्षी दल का राष्ट्र - धर्म होता है..अगर विपक्ष अपने कम में सफल नहीं होता है तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे का निशान माना जाना चाहिए. इसके दो ही अर्थ हो सकते है.. १. विपक्ष सत्ता के किसी भी प्रकार से प्रभाव में है..उसने या तो रिश्वत ली है अथवा राजनतिक लाभ लेकर लोकतान्त्रिक हितों को गिरवी रख दिया है. अथवा २. विपक्ष बहुत कमजोर है. इस समय देश में राजग प्रमुख विपक्षी गठबंधन है तथा भाजपा प्रमुख विपक्षी दल. विभिन्न अवसरों पर इसने अपना प्रबल विरोध दर्ज करके लोकतंत्र कि सेवा की है. और अपने आप को सिद्ध किया है. दर-असल हम लोग यह मन लेते है की देश में सिर्फ सत्ता-दल की ही भूमिका होती है..विपक्ष के पास कोई काम नहीं होता. हमारे अन्दर एक खूबी और है की हमें लोकतंत्र के स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं होता वरन हम जिस दल से भी जुडाव रखते है उसी के प्रवक्ता बन जाते है.अपनी पार्टी के कुकर्त्यों पर पानी डाल देना और दूसरी के अच्छे कार्यों को भी महत्वहीन करार देना हमारा पार्टी धर्म बन जाता है जिसका अधिकांश भारतीय जी-जान से निर्वाह करते है. छोटे छोटे मुद्दों को पार्टी से जोड़ कर आम आदमी भी ऐसे बयान जारी करता है जैसे वह उसका राष्ट्रीय प्रवक्ता हो. भले ही पार्टी में किसी भी स्तर पर उसकी व्यक्तिगत हैसियत कुछ भी न हो..मेरे कहने का अभिप्राय है की हर व्यक्ति अपनी पार्टी के लिए मनीष तिवारी बन जाना चाहता है..यह पृवृत्ति लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक संक्रमण का संकेत है. एक जागरूक लोकतंत्र-प्रेमी को पार्टी से ऊपर उठकर लोकतंत्र की रक्षा एवं राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए. भ्रष्टाचार इस समय एक राष्ट्रीय मुद्दा है.अन्ना आन्दोलन को अभी ज्यादा दिन नहीं हुवे हैं.पूरे देश को इस मुद्दे ने प्रभावित किया है.महंगाई की कोई सीमा रेखा नहीं है.उस पर वास्तविकता से बेखबर हमारे मंत्री महोदय कुछ गैर जिम्मेदाराना बयान जारी करके जले पर नमक छिड़कने का काम कर देते हैं..जैसे महंगाई बढने का प्रमुख कारण अन्य कारणों के साथ सरकार द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि अब ज्यादातर लोगो ने क्योंकि सब्जियां खानी शुरू कर दी है अतः मूल्य वृद्धि स्वाअभाविक है .इसी प्रकार एक कारण यह भी बताया गया है कि लोगो कि भोजन सम्बन्धी आदतें बदल रही है अतः खाद्य वस्तुओं कि कमी के कारण मूल्य बढ रहे है.. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तो स्थिति यह है कि अन्ना आन्दोलन के बाद ऐसा लगता है सरकार यही तय नहीं कर पा रही है कि किसे भ्रष्ट माना जाए.रिश्वत देनेवाले को,लेने वाले को या फिर न लेने वाले को. अगर ऐसा नहीं होता तो" कैश फॉर वोट " कांड में सरकार सभी को एक तराजू में नहीं तोलती.भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुवा है कि रिश्वत खोरी का भांडाफोड़ करने वालों को सजा मिली हो.भाजपा के पूर्व सांसदों ने नुक्लियर डील मसले पर सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए मिले एक-एक करोड़ रूपये लेकर अगर अपनी जेबे गरम कर ली होती तो शायद सांसद रिश्वत-काण्ड कि हकीक़त से सारा देश वंचित रह जाता .अमर सिंह जी के राजनीतिक चरित्र को सारा देश जानता है.उनके काल कि किसी पोलिटिकल होर्स ट्रेडिंग में वह शामिल न रहे हो इस बात के सबूत नहीं हैं..लेकिन उनके साथ साथ उनकी असलियत को सामने वालो को जो इनाम मिला है.उसकी प्रशंशा में मेरे पास तो शब्द नहीं है.यह हमारे लोकतंत्र कि सेहत के लिए ठीक नहीं है. हमें दलगत सोच से ऊपर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी कि इस बात का समर्थन करना चाहिए कि उन्होंने उस समय के विपक्ष का नेता होने के नाते कुलस्ते एवं भगोरा द्वारा संसद में रिश्वत में मिले नोटों को दिखाने के काम के लिए खुद को जिम्मेवार मानकर सरकार से खुद को भी जेल में डालने कि मांग कर डाली.राजनितिक चश्मा लगाये हुवे लोगो को इसमें नोटंकी,ड्रामा या राजनितिक लाभ पाने कि आशा में किया जाने वाला प्रपंच दिख सकता है.लेकिन वास्तव में यह आडवानी जी कि लोकतान्त्रिक सोच को प्रतिबिंबित करता है.भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनकी रथ-यात्रा से वे भाजपा को कितना लाभ दिला पाएंगे यह मेरे चिंतन का विषय नहीं है.अडवानी जी रथ यात्रा द्वारा जनजागरण में माहिर है. लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर राष्ट्रिय पहल कि घोषणा करके उन्होंने यह प्रमाणित कर दिया कि वह अपने विपक्ष-धर्म को बखूबी जानते हैं.माध्यम कोई भी हो लोकतंत्र को मजबूती मिलती रहनी चाहिए.लोकतंत्र जिंदाबाद,जनता जिंदाबाद. कुंवर सत्यम.