Wednesday, March 9, 2016

दीमकों ने बगड़ खोकला कर दिया।

मैं मशगूल था चहारदीवारी बनाने में,
मेरा दीमकों ने बगड़ खोकला कर दिया।
जिनसे चलते रहने का ज़ज़्बा मिला,
उन्ही जुगनुओं ने पस्त होसला कर दिया।

Monday, March 7, 2016

आदरणीय प्रधानमंत्री जी


सेवा मे,
प्रधानमंत्री,भारत सरकार
7,रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली-11000
               दिनांक                08/03/2016, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
आदरणीय
प्रधानमंत्री जी, सादर नमस्कार
मै किसान की बेटी होने के नाते एक किसान का दर्द व्यक्त करना चाहती हूँ।
इस बार सरकार ने जो बजट प्रस्तुत किया वह काबिले तारीफ है। पहली बार लगा कि किसानो के इस देश मे कोई किसानो की परवाह भी करता है।मै आपका ध्यान किसानो से जुड़ी कुछ समस्याओं की और आकृष्ट करना चाहती हूँ।
देश की सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि इस देश मे किसानो के लिए नीतियों का निर्माण उध्योगपतियों की सलाह से होता है, देश मे फिक्की और एस्सोचेम जैसे संगठन किसान नीतियों को प्रभावित करते है। हमारे पास एक कृषि प्रधान देश होने के बाद भी किसान आयोग तक नहीं है जो किसानो के दुख दर्द पर गौर कर सके।कीमत निर्धारण के लिए देश मे  “कृषि लागत एवं मूल्य आयोग” है जिसमे किसानो का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, चंद अफसर जिनहे किसानो की मूल समस्याओं का अहसास तक नहीं ,वातानुकूलित कक्ष मे बैठ कर मूल्य निर्धारण कर देते है।हर दस वर्ष बाद देश मे “वेतन आयोग” गठित किया जाता है ताकि वेतन को महंगाई आदि के संदर्भ मे समयानुकूल बनाया जा सके, महंगाई सिर्फ नौकरी पेशा लोगो के लिए ही नहीं बढ़ती है,वरन किसान,गरीब और मजदूर इससे सर्वाधिक प्रभावित होता है क्योंकि उसकी आय को कोई स्थायी स्रौत नहीं है। इस कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को ही सहजता के साथ “राष्ट्रीय किसान आयोग मे बदला जा सकता है जिसमे किसानो और कृषि पृष्ठभूमि वाले अधिकारियों को रखा जा सकता है। किसानो से जुड़े समस्त मसलो का अध्ययन एवं उसके निवारण के उपाय,महंगाई  एवं मुद्रास्फीति का कृषि लागत एवं मूल्यो पर प्रभाव को ध्यान मे रखकर कृषि लागते तय हो। हालांकि कृषि उत्पादो की लागत बढ़ने से मुद्रास्फीति पर प्रभाव पड़ेगा लेकिन इसका हल कृषि पर लागत सबसिडी देकर दूर किया जा सकता है।किसान,गरीब एवं मजदूर अपनी आय का 90% से अधिक बाजार मे खर्च कर देता है जिससे स्थानीय बाजारो मे रौनक आ जाती है अर्थात किसान एवं मजदूर ही स्थानीय उधयोग एवं बाज़ारों का आधार है। यदि वह समृद्ध होगा तो मंदी को दूर करने के लिए सरकार को गड्ढे खोदकर भरवाने कि कभी जरूरत नहीं पड़ेगी
 आदरणीय प्रधान मंत्री जी, देश का किसान गत कई वर्षो से गन्ना मूल्य के भुगतान की समस्या से जूझ रहा है।शुगर मिल लाबी उच्च राजनीतिक स्तर पर सांठगांठ करके गन्ना किसानो का भुगतान कई कई वर्षों के लिए रोककर उस धन से अनैतिक लाभ कमा रही है। उधर गन्ना किसान पहले तो पैसा उधार लेकर गन्ना उगाता है दूसरी और मिल मालिक समय पर गन्ना का पैसा भुगतान नहीं करते ,इससे गन्ना किसान भयंकर आर्थिक संकट मे फंस जाते है। किसान राहत के नाम पर अरबों के राहत पैकेज को मिल लाबी डकार जाती है। हम किसान शिकायत करे भी तो किससे ?
आदरणीय,प्रधानमंत्री जी,
 यदि सरकार की किसानों के बारे मे सिर्फ नियत भर साफ हो तो गन्ना समस्या का समाधान मजबूत इच्छाशक्ति के साथ आसानी से किया जा सकता है। कहा जाता है कि चीनी मिले विदेशों से रॉ शुगर आयात करती हैं क्योंकि उससे चीनी उत्पादन सस्ता पड़ता है। यदि यह सही है तो चीनी उत्पादन के लिए यही माध्यम अपना लिया जाए और किसानों को इससे अवगत करा दिया जाए। जब कोई संकट आता है तो सरकार एक “निर्देशिका”( Directory) जारी करती है ताकि लोग संकट से अवगत हो सके। जब भी किसी देश मे आतंकवादी घटनाएँ या कोई महामारी आती है तो सरकार अपने लोगो को निर्देशिका के माध्यम से सचेत करती है कि संबन्धित देश कि यात्रा न करें।  फिर ऐसा ही कृषि के विषय मे क्यो नहीं किया जाता? क्या सरकार उत्पादन आधिक्य की स्थिति मे अपने किसानो को यह अवगत नहीं करा सकती है कि इस वर्ष अमुख फसल का उत्पादन अधिक होगा या इसमे कीमतों के कम रहने का अनुमान है अतः किसान भाई अपने खेत के अमुख % से अधिक हिस्से से ज्यादा पर यह फसल उगाने से बचे। यदि वास्तव मे शुगर मिले घाटे मे चल रही है तो फिर सरकारे किसानों लिए निर्देशिका जारी क्यो नहीं करती कि गन्ना उगाने से बचे?ताकि संकट टाला जा सके। हमारे देश मे नीतियाँ उपरिवरगोन्मुखी है ।
हम किसान आप से यह चाहते है कि
·        राष्ट्रीय किसान आयोग का अतिशीघ्र गठन हो।
·        किसानो के लिए प्रतिवर्ष कृषि निर्देशिका घोषित की जाए ताकि वे संभावित फसल संकटों से बच सके।
·        महोदय, किसान गन्ना उत्पादन सिर्फ शुगर मिल के लिए ही करते है क्योंकि समान्यतः एक निश्चित क्षेत्र मे स्थित मिल को ही गन्ना बेचा जाता है,उस दायरे मे अन्य खरीदार नहीं होते हैं। ऐसे मे गन्ना मिल अपने क्षेत्र के किसानो को गन्ना उगाने के लिए अग्रिम भुगतान करे ताकि किसान लागत मूल्य पर ब्याज देने से बच सके। यह संभव है । इससे किसान तो आर्थिक दलदल मे फँसने से बच ही सकते है मिले भी अपनी आवश्यकतानुसार गन्ना उत्पादन करवा सकेंगी।
महोदय, अग्रिम भुगतान दवारा उत्पादन का सबसे अच्छा उदाहरण देश का भट्टा उधयोग है। भट्टा मालिक मिट्टी,लेबर,ईंधन सब कुछ अग्रिम रूप से भुगतान करके उत्पादन करते हैं। भट्टा व्यापारी बहुत बडे  उध्योगपति नहीं होते है लेकिन फिर भी वह अग्रिम भुगतान करके उत्पादन करते है। मिल मालिक भट्टा व्यापारियों की तुलना मे आर्थिक रूप से कई गुना सम्पन्न है अतः उनके लिए किसानों को गन्ना उत्पादन हेतु अग्रिम भुगतान आसानी से किया जा सकता है।
परतंत्र भारत मे नील उद्धोगपति किसानों को अग्रिम भुगतान करके ,नील की खेती करवाते थे, अब तो भारत आज़ाद है, यह संभव है।
·        महोदय किसानों को बैंक से 7% की दर पर ऋण मिलता है जो बहुत ही ज्यादा है। दुनिया भर के देशों मे ब्याज दरे शून्य की और बढ़ रही है।लेकिन हमारे देश मे ब्याज दरें अभी भी बहुत ज्यादा है।कृषि ब्याज मे आप चाहे तो विदेशी निवेश मंगा सकते हैं।     आपकी जापान यात्रा के समय बुलेट ट्रेन के लिए जापान से भारत को 79,000 करोड़ रुपये का ऋण सिर्फ 0.1% की ब्याज दर पर 50 वर्षों के लिए मिला है उस पर भी पहले 15 वर्षो तक कोई ब्याज नहीं देना है। महोदय बुलेट ट्रेन निश्चित रूप से भारत की भव्यता को बढ़ाएगी लेकिन यह भव्यता तब और भी बढ़ जाएगी जब मेरे ससुराल हथछोया से कोई किसान अपनी संपन्नता के चलते “कुछ दिन तो गुजार सकेगा गुजरात मे”। अतः आपसे अनुरोध है कि किसानो को शून्य % पर कृषि हेतु ऋण उपलब्ध कराया जाए। सरकार यदि विदेश से 0.1% पर ऋण लेकर देश के किसानो को 1% पर भी दे सके तो इससे सरकारी खजाना तो भरेगा ही देश का किसान भी पूंजी की समस्या से निजात पाकर,सेवा जैसे अन्य क्षेत्रो मे आ सकता है। वह भी संपन्नता का स्वाद ले सकता है।
·        उत्तर प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र खासकर सहारनपुर,शामली,पोपुलर की खेती के लिए प्रसिद्धि पा रहा है लेकिन उसका लाभ इसलिए समाप्त होता जा रहा है कि हरियाणा सीमा से लगे क्षेत्र नकुड़, सरसावा, चिलकना, (सहारनपुर)आदि मे प्लाइवुड उधयोग विकसित नहीं किया गया है। यदि नकुड़, सरसावा क्षेत्र मे प्लाइवुड उधयोग को टैक्स छूट देकर शुरू करवा दिया जाए तो इस क्षेत्र के किसानो कि ही नहीं वरन सभी गरीब,मजदूर ,व्यापारी और उध्योगपतियों के “अच्छे दिन” आ जाएंगे।
      आदरणीय प्रधानमंत्री जी बाते तो मन मे बहुत हैं,लेकिन लिखते हुए डर लग रहा है कि कहीं मेरा पत्र व्यर्थ का प्रलाप ही सिद्ध न हो और यह रेसकोर्स रोड की किसी डस्ट्बिन का कचरा मात्र ही बढ़ाए। कुछ आप से मिल सका तो किसान, मजदूर,गरीब, और आम आदमी का दर्द दोबारा कहने का साहस जुटा सकूँगी।
आपकी बेटी,
पिंकी पँवार सत्यम,
C/O सुनील सत्यम,
k-151, Parramount Tulip Colony

Saharanpur-247001, Uttar Pradesh