Tuesday, November 29, 2011

काला धन या कला धन....?

देश में आजकल काला धन चर्चा में है. बड़ी बड़ी बाते हो रही है. रामदेव और आडवाणी जी विरोध में ताल थोक रहे है कि विदेश से काला धन वापस लाया जाये. सरकार के पसीने छूट रहे है, उसे आशंका है कि देश कि जनता कही इसकी भारी कीमत न वसूल कर ले...चुनाव में.

काला धन क्यों उत्पन्न हो गया इससे जनता को कुछ खास लेना देना नहीं है. कुछ अ[वादों को छोड़ दे ( नेताओं के पैसे को ) तो विदेश में जमा अधिकांश काला धन टैक्स व्यवस्था में अन्तर्निहित खामियों के कारन पैदा हुवा है..ये उस समय में इकठ्ठा हुवा जब फेरा जैसे कानूनों का दौर था.टैक्स डरे बहुत ज्यादा थी.सुविधाओं और प्रोत्साहन के नाम पर बाबुओं कि दुत्कार के आलावा कुछ नहीं था.. ऐसे में अपनी मेहनत कि कमाई कोई टैक्स के रूप में क्यों देना चाहेगा . नतीजा काला धन के रूप में आया..हम इसे कला धन भी कह सकते है.. क्योंकि इसे इसके मालिकों ने अपनी कला से कमाया था जिसे वे ऐसी निकम्मी सरकार को नहीं देना चाहते थे जो बदले में उनको कोई भी सुविधा न देती हो..जिसके नेता चोर हो. और इतना ही नहीं गोपनीयता के नाम पर उनके सारे काले कारनामों को सुरक्षा का मजबूत आवरण उपलब्ध हो..घोटाले बाज नेताओं का मकसद ही जनता कि गाढ़ी कमाई को चाट कर जाना रहा हो..

विदेश में जमा काले धन को दो वर्गों में बांटा जा सकता है.
१. ऐसा धन जो ऊंची टैक्स दरो से बचने के लिए विदेश में जमा किया गया है..यह मुख्य रूप से व्यवसाइयों एवं उद्योगपतियों का पैसा है.

इस पैसे को विदेश से भारत लाकर आज कि टैक्स दरों के हिसाब से टैक्स काटकर इसके मालिको को सौंप देना चाहिए ताकि यह पैसा देशी अर्थव्यस्था को मजबूती प्रदान कर इसके साथ यह शर्त होनी चाहिए कि इस पैसे का उपयोग ये लोग ग्रामीण उद्योगीकरण, ग्रामीण सड़को एवं परिवहन के उन्नतीकरण एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विद्युतीकरण में करेंगे.

२. दूसरी श्रेणी में ऐसा पैसा है जो नेताओं ने इस देश को लूटकर कमाया है. ऐसे धन को वापस लाकर राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर देना चाहिए. देश को लूटने वाले इन नेताओं के विरुद्ध कठोर क़ानूनी कार्यवाही कि जनि चाहिए. इस पैसे का उपयोग देश में आधारभूत सरंचना को मजबूत करने, कृषि अर्थव्यवस्था में अनुसन्धान एवं गरीबी उन्मूलन योजनाओं पर खर्च करना चाहिए.

उपरोक्त के अतिरिक्त काले धन का एक और वर्ग है जिस के बारे में कोई बात करने को तैयार नहीं है..यह है इस देश के मठ, मंदिर मस्जिद,आश्रमों चर्चों और गुरद्वारों में दबा अथाह धन का भंडार..सरकार सभी दलों की सहमति से देश के सभी धार्मिक स्थानों को वैष्णो देवी मंदिर की तर्ज पर ट्रस्टों को सौंप दे ताकि वहां चल रही धार्मिक लूट को रोक कर इस पैसे का धार्मिक स्थानों के विकास एवं सञ्चालन के साथ साथ देश की आर्थिक उन्नति के लिए भी प्रयोग किया जा सके. ऐसा करने से इन धार्मिक स्थानों पर कार्यरत लोगो को तो सरकारी सरंक्षण मिलेगा ही और बहुत से लोगो को भी वहां रोजगार दिया जा सकता है..

कुंवर सत्यम..

Wednesday, November 23, 2011

ईंट की गाड़ी.

गुल्ली डंडा ,

पिट्ठू जिंदाबाद.

गोल का टोरा..
चोट गोली पिल..
रेत से वो घर बनाना.
कंदूरी से भैंस -बैल बनाना.

ईंट की गाड़ी.
मुह से घुरघुर
करके गाड़ी चलने की,
आवाज निकालना..
जितना आनंद देता था
उतना आज सचमुच की लग्जरी
गाड़ी चलाने में भी नहीं आता.

क्यों नहीं बचपना
जवान हो जाता
अपनी उसी सादगी के साथ.

कुंवर सत्यम.

Sunday, November 13, 2011

TET EXAM...

केंद्र के साथ साथ राज्यों में भी TET परीक्षा लागू कर दी गई है. बेरोजगारी का आलम है की आप किसी भी चीज के लिए कोई परीक्षा पद्दति लागु कर दे तो दो चार लाख की भीड़ आराम से मिल जाएगी. जिस किसी भी महाशय ने शिक्षकों की योग्यता परखने के लिए टेट का सुझाव दिया होगा वह भी अपने आप को धन्य मान रहा होगा की उसका दिया सुझाव लागू हो गया है..

टेट की नौटंकी की कीमत लाखों बेरोजगार युवक आर्थिक और मानसिक दोनों प्रकार से चुकायेंगे. टेट एक नौटंकी परीक्षा है यह किसी रोजगार की गारंटी नहीं है. tet का अर्थ है teacher 's elegibility test अर्थात अध्यापक पात्रता (योग्यता) परीक्षा . यह परीक्षा पास करने वालो को योग्यता का प्रमाण पत्र मिलेगा जो इस बात का प्रमाण होगा का certificate धारक अध्यापक नियुक्त किये जाने के योग्य है..लेकिन उसकी योग्यता का यह प्रमाण पत्र उसे जीवनभर कही अध्यापक नियुक्त करवा सकेगा इस बात की कोई गारंटी नहीं है.यानि कि जीवन भर युवक को हताशामय जिंदगी जीने की गारंटी जरुर मिलेगी...धारक को हमेशा एक बात सालती रहेगी की योग्य होने के बावजूद भी उसके पास नौकरी नहीं है.

टेट का दूसरा पहलु यह है की टेट की परीक्षा पास करने के बाद भी प्रमाण पत्र धारक को नोकरी पाने के लिए दोबारा परीक्षा पास करनी होगी. जब दोबारा, तिबारा परीक्षा पास करके ही नोकरी मिलनी है तो टेट के नाम पर युवा शक्ति की योग्यता का मखौल क्यों.?

हम सब जानते है की आज B.Ed. करने के नाम पर हजारो संस्थान कुकुरमुत्तों की भांति सड़क के दोनों किनारों पर उग आये है. वहां बी.एड. की डिग्री कैसे मिलाती है यह किसी से छुपा नहीं है..उत्तर प्रदेश सरकार ने विशिष्ट बी.टी.सी की शुरुवात की थी ..जिसने प्रदेश में हजारो युवको को रोजगार तो दिया लेकिन उनकी योग्यता आंकने के लिए कोई परीक्षा क्यों नहीं ली गई ? इस बात पर कोई प्रशन कही किसी ने नहीं पूछा. जब यही सब होना है तो फिर टेट का नाटक क्यों? और अगर टेट परीक्षा से योग्यता की परीक्षा होनी है ( जो संभव है ) तो फिर टेट पास करने के बाद भी नौकरी की गारंटी क्यों नहीं.?
सवाल यह है की युवा शक्ति की शक्ति का मखौल कब तक उड़ाया जाता रहेगा..क्या वास्तव में कोई राजनितिक दल युवा शक्ति की शक्ति का राष्ट्रहित में सदुपयोग कर पायेगा.

कुंवर सत्यम.

Tuesday, November 1, 2011

दिग्विजय को चाहिए चंदे का हिसाब..

दिग्विजय सिंह अन्ना आन्दोलन के धुर विरोधी है. उन्होंने हमेशा आन्दोलन की निंदा की है. उनका हर संभव प्रयास आन्दोलन को किसी भी प्रकार से बदनाम करने का रहा है. अन्ना आन्दोलन को उन्होंने चवन्नी का दान नहीं दिया. लेकिन उन्हें आन्दोलन को मिले चंदे का हिसाब चाहिए. एक-एक पाई का हिसाब चाहिए दिग्विजय को.. देश की जनता , जिसने १५ दिन के अन्दर आन्दोलन को लगभग ३ करोड़ रुपये का चंदा दिया, उसने कभी आन्दोलन से चंदे के पैसे का हिसाब नहीं माँगा. जनता को अपने सामाजिक नेतृत्व पर भरोसा है इसीलिए उसने आन्दोलनकारियों से हिसाब नहीं माँगा.
अच्छा रहता की दिग्विजय सिंह ने दिल्ली में हुए commanwealth games में हुए खर्च का हिसाब शीला दीक्षित से माँगा होता. कांग्रेस को मिले राजनितिक चंदे का कभी हिसाब माँगा होता. अच्छा रहता उन्होंने दिल्ली में बन रहे सिग्नेचर ब्रिज पर हो रही लूट का दिल्ली की मुख्यमंत्री से हिसाब माँगा होता.
ऐसे बहुत से हिसाब है जो यदि दिग्विजय सिंह ने मांगे होते तो उनके साथ-साथ कांग्रेस की छवि भी सुधरी होती..

कुंवर सत्यम