Wednesday, July 30, 2014

कंगारू की कहानी

एक जंगल में एक कंगारू रहता था.उसका एक छोटा बच्चा था जिसे वह अपनी पेट में बनी धानी( थैली ) में रखता था. एक दिन जब उन दोनों को भूख लगी तो वह भोजन की तलाश में निकला. वह भोजन खोज ही रहा था कि उसके बच्चे को शैतानी सूझी और वह धीरे से धानी से कब बाहर निकल गया कंगारू को पता ही नही चला.

Saturday, April 26, 2014

इन्द्रप्रस्थ राज्य के विश्वविद्यालय


वर्तमान में इन्द्रप्रस्थ राज्य में निम्नलिखित 18 विश्वविद्यालय कार्यरत है:
     
दिल्ली
1 गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय
2 दिल्ली विश्वविद्यालय
3 जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
4 डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय
5 दिल्ली प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय
6 इंदिरा गांधी नेशनल ओपन विश्वविद्यालय
7 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय
8 दक्षेश विश्वविद्यालय

मेरठ
9 चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय
10 सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिकी        विश्वविद्यालय
11 स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय
12 शोभित विश्वविद्यालय

 गौतमबुद्धनगर (ग्रेटर नॉएडा)
13 गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय
14 शारदा विश्वविद्यालय
15 एमिटी विश्वविद्यालय
16 महामाया प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय

सहारनपुर
17 ग्लोकल विश्वविद्यालय

मुरादाबाद
18 तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय

Tuesday, April 1, 2014

लोकतंत्र के पाए बनेंगे तभी मिलेगी खुशहाली की चारपाई...!

भारत दुनिया का सबसे प्राचीन गणतंत्र है.वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होना अपने आप में आधुनिक सभ्य दुनिया में गर्व से सीना चौड़ा करने के लिए एक बड़ी वजह है हमारे लिए.
   लेकिन इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमारा स्थान कहाँ है , यह हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होना चाहिए. देश के स्वातंत्र्य संघर्ष में हमारा योगदान सर्वविदित है.हम लड़ने में लगे रहे, भारत निर्माण के पहले दिन से हम देश के दुश्मनों के साथ लगातार युद्दरत रहे है.शक,पहलव,हूण,कुषाण,अरब,तुर्क,और मुगलों से लेकर अंग्रेजो तक देश के हर दुश्मन से हमने लोहा लिया,अपनी प्राणाहुति देकर राष्ट्र रक्षा का वृत्त निभाया.सतत संघर्षशील रहने के कारण लडाकुपन और व्यवस्था के विरुद्ध सैद्धांतिक विद्रोह हमारी रगों में खून बनकर दौड़ने लगा है.
देश हमारे पूर्वजों के असंख्य बलिदानों के फलस्वरूप 1947 में आज़ाद हो गया लेकिन हमारी लड़ाकू प्रवृत्ति आज भी यथावत बनी हुई है.आज देश में हमारी अपनी चुनी हुई सरकारे हैं लेकिन सत्ता के विरुद्ध संघर्ष की हमारी प्रवृत्ती आज भी यथावत बनी हुई और इसका घातक परिणाम यह है कि विकास की दौड़ से हमारा समाज आज भी वंचित है.

* समाज को व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता है.
* Motivation जरुरी है. हमें किसी ने motivate नहीं किया.
* हमारे आस-पास के धूर्त लोगो हमारे समाज का मनोबल गिराया.
नकारात्मकता को बढ़ावा दिया गया, उतने पैर पसारो जितनी चादर, कहकर हमारे अन्दर की संभावनाओ को नष्ट कर दिया गया..हमारी जोखिम क्षमता को कभी बढ़ावा नहीं मिला,
कभी किसी ने यह कहकर मनोबल नहीं बढाया कि खुलकर पैर  पसारो, चादर छोटी है तो क्या..बड़ी का इंतजाम कर लेंगे.
* हमारे समाज को चोर कहकर बदनाम किया जाता रहा.बदनाम करने वाले वही लोग थे जिनका स्वयम का अतीत देशद्रोही का रहा है..
देश के दुश्मनों से लड़ने के कारण हम शिक्षा से दूर चले गए.
मै कहता हूँ कि मुझे गर्व है कि मेरे पूर्वज चोर थे, क्योंकि उन्होंने देश के शत्रुओं को लूटा और बाद में उनके चमचो को.
* जो चोर बन सकता है वह ज्यादा होशियार होता है. क और बनने में नोकरी और बिजनेस में कैरियर बनाने से ज्यादा मेहनत करनी पडती है, क्योंकि चोरी भी करनी है और खुद को पुलिस से भी बचाना है  एन्कौन्टर का खतरा हमेशा अलग से..फिर हमें इतनी मेहनत करने की जरूरत क्या है..इससे कम मेहनत में तो SDM बना जा सकता है..
*आज हमारे पास रोल माडल की कमी नहीं है. विजय विधूड़ी,अरविन्द पोसवाल, पूजा अवाना जैसे उदहारण है जिनसे समाज के बच्चे प्रेरणा ले सकते है.

* भारत एक लोकतान्त्रिक देश है.आज हमे शाशन/सत्ता के साथ टकराने की नहीं बल्कि उसमे घुस जाने की जरूरत है,टकराव की आदत अब हमे छोडनी होगी.
अब समय आ गया है कि हम लोकतांत्रिक प्रतिष्ठानों में अपनी भागीदारी/ हिस्सेदारी प्राप्त करने के लिए संघर्ष करे..
* संघर्ष मैदान में नहीं मकान में करना है.यह संघर्ष हमारी युवा पीढ़ी को करना है. उसे मकान में जी जान से पढ़ाई में मेहनत करनी होगी.
* जरूरत अपनी अगली पीढियों को खेती से निकालने की है. एक तो खेत अब रहे नहीं. खेती से ही विकास होना होता तो देश में सबसे अमीर किसान ही होते. इसलिए खेती से बाहर आओ, आय के वैकल्पिक साधन अपनाओ..जो बच्चा जिस लायक है उसे उसी काम में लगाओ, दूकान खुलवाओ, कोई और काम करवाओ लेकिन खेती के भरोसे मत रहने दो.

* लोकतंत्र के चार स्तम्भ माने जाते हैं- कार्यपालिका,न्यायपालिका,विधायिका और प्रेस..
इन चारो में हम कहाँ खड़े है ?
*
हमारे समाज का हर आदमी MP/MLA का ख्वाब पालता है वह भले ही इसके योग्य है या नहीं.समाज जिम्मेदार बने और तय करे कि वास्तव में समाज का नेतृत्व करने लायक वास्तव में कौन है.किसी को MP/MLA बना देने मात्र से वह समाज का नेता नहीं हो जाता है.. जो लोग संसद/विधान सभा में समाज के मुद्दे नहीं उठा सकते/ सवाल नहीं पूछ सकते/क्षेत्र को सरकारी योजनाओ का लाभ नहीं दिला सकते/सरकारी संसाधनों का समाज हित में प्रयोग नहीं करवा सकते उनसे तो अच्छा है किसीअन्य समाज का कोई योग्य व्यक्ति जीत जाए.
* अब तक हमने जिनको समाज का जनप्रतिनिधि बनाया उनके काम का आकलन सडक/खड़ंजे/नाली बनवाने और नलके लगवाने से नहीं किया जा सकता है..यह काम तो एक अंगूठा छाप जनप्रतिनिधि भी करा देगा, नही कराएगा तो निधि वापस हो जायेगी.
*हमे देखना चाहिए कि उन्होंने क्षेत्र में कितने सरकारी कालेज बनवाये,मेडिकल कालेज, विश्वविद्यालय बनवाये? शिक्षा सुविधाओं का विकास कराया, क्षेत्र की समस्याओं से सदन को ठीक से अवगत कराया ? क्षेत्र में कोई बड़ी सरकारी परियोजना प्रारंभ करवाई? सदन में कोई रचनात्मक विधेयक पेश किया?

* हमें कुछ लोगों ने अपने हित साधने के लिए गलत जानकारी दी कि जिनकी विभिन्न राजनितिक दल हमारी अनदेखी करते है..ऐसा करके वे लोग अपनी अयोग्यता
को ही छुपाते है..इस देश में वाजपेयी,गुजराल,देवगौड़ा कितने है? वे प्रधानमंत्री बनते है अपनी नेत्रत्व  क्षमता से,
हमारे लोग वास्तव में उस स्तर के नहीं है इसलिए समाज को गुमराह करते है.

*कार्यपालिका लोकतंत्र का एक स्तम्भ है, इसके अतिरिक्त 3 महत्वपूर्ण स्तम्भ और है..जिन पर हमने कभी ध्यान नहीं दिया..जबकि इनमे अपनी भागीदारी बढ़ाना कहीं अधिक आसान है..
प्रेस में जाना आसान है- हम उस पर ध्यान केन्द्रित करे..
न्यायपालिका में जाना भी आसान है, उस पर ध्यान केन्द्रित करना होगा.
विधायिका का महत्वपूर्ण अंग सिविल सेवाएं है.इसमें जाना भी बहुत कठिन नहीं है.
मै दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब हमारे पास लोकतंत्र के ये चार पाए होंगे तो हम इतने योग्य भी होंगे के कार्यपालिका में हम अपना हिस्सा खुद ले लेंगे और देश / प्रदेश में हमारे मंत्री/मुख्यमंत्री/प्रधानमन्त्री भी होंगे..
जसाला परिवार का उदाहरणः हमारे सामने है..न्यायपालिका में उच्च स्थान तक पहुंचे..उनकी बदौलत इस परिवार को कितनी बढ़त है इसका हर कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता है.

इसलिए संकल्प ले कि हम लोकतंत्र के इन तीन स्तंभों में अपनी हिस्सेदारी बढाने के लिए जी जान से लगेंगे,अपने बच्चो को लगायेंगे.और सत्ता में अपनी भागीदारी लेकर रहेंगे.यही एक रास्ता है..

Friday, March 21, 2014

लिख दो इतिहास-पटल पर !

लिख दो इतिहास-पटल पर,
दीवानों तुम चल कर.
वीर शिवा तुम बनकर,
गहरे नीले नभ पर !

लिख दो तुम अंगड़ाई,
भारत भाग्य लड़ाई.
जयचंदों का पतन लिखो,
गद्दारों की विदाई..
झटक दो पड़ी धूल अकल पर..

लिख दो इतिहास...

सुनील सत्यम