खेत खलिहान और किसान की दशा सुधारने में सरकारी खेती, आमूलचूल परिवर्तन ला सकती है. इससे देश में उत्पादन की गुणवत्ता एवं गुणात्मकता भी बढ़ेगी. किसी फसल का अधिक्य होने पर उसके विनाश से भी बचा जा सकेगा.हर वर्ष देश में खरबों रुपये का खाद्यान्न भण्डारण के आभाव में नष्ट हो जाता है..
इस खेती में सरकार देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार फसल मानचित्र तैयार कराये और देश की आवश्यकता के हिसाब से किसी फसल के उत्पादन के लिए कुल भौगोलिक क्षेत्रफल निर्धारित कर दे. सरकार देश के किसानो को सब्सिडी के बजाय मुफ्त में बीज-खाद-पानी दे. किसी फसल की क्षेत्र विशेष में प्रचलित उत्पादन दर को मानक मान कर उत्पादन के लिए लक्ष्य निर्धारित किया जाए. उससे अधिक उत्पादन होने पर किसानो के लिए बोनस की भी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
किसान को उसकी भूमि का बाजार की प्रचलित कीमतों पर वार्षिक या मासिक आधार पर किराया दिया जाये. और किसानों के लिए मासिक वेतन निर्धारित होना चाहिए. क्योंकि इस व्यवस्था में किसान को सरकारी कर्मचारी के रूप में रखा जायेगा.
सरकारी खेती में किसान अपने लिए या बाजार के लिए उत्पादन न करके सरकार के लिए उत्पादन करेगा. फसल कटाई के बाद किसानों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार रियायती दरों पर फसल देकर शेष फसल सरकार अपनी आवश्यकताओं के लिए प्राप्त कर ले.
यदि हम इस व्यवस्था को अपना ले तो आत्महत्या के लिए मजबूर किसानों को तो रहत मिलेगी ही साथ में मंदी जैसी आपात स्थितियों से बचा जा सकेगा. किसान एवं ग्रामीण गरीब की दशा भी सुधरेगी..इसके माध्यम से हम भूख के अभिशाप और कुपोषण जैसी स्थितियों से भी बच सकेंगे. यह एक नयी अर्थव्यवस्था की और एक सार्थक कदम भी होगा..
एक प्रकार से यह ग्रामार्थाशास्त्र की शुरुआत होगी. सरकारी खेती का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के माध्यम से होना चाहिए. पंचायतों को प्रति वर्ष फसल विशेष के लिए सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य मिले. वेतन, बोनस एवं भूमि का मासिक/वार्षिक किराया भी पंचायतों के द्वारा ही सीधे किसानों को प्रदान किया जाना चाहिए.
कुंवर सुनील सत्यम.
इस खेती में सरकार देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार फसल मानचित्र तैयार कराये और देश की आवश्यकता के हिसाब से किसी फसल के उत्पादन के लिए कुल भौगोलिक क्षेत्रफल निर्धारित कर दे. सरकार देश के किसानो को सब्सिडी के बजाय मुफ्त में बीज-खाद-पानी दे. किसी फसल की क्षेत्र विशेष में प्रचलित उत्पादन दर को मानक मान कर उत्पादन के लिए लक्ष्य निर्धारित किया जाए. उससे अधिक उत्पादन होने पर किसानो के लिए बोनस की भी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
किसान को उसकी भूमि का बाजार की प्रचलित कीमतों पर वार्षिक या मासिक आधार पर किराया दिया जाये. और किसानों के लिए मासिक वेतन निर्धारित होना चाहिए. क्योंकि इस व्यवस्था में किसान को सरकारी कर्मचारी के रूप में रखा जायेगा.
सरकारी खेती में किसान अपने लिए या बाजार के लिए उत्पादन न करके सरकार के लिए उत्पादन करेगा. फसल कटाई के बाद किसानों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार रियायती दरों पर फसल देकर शेष फसल सरकार अपनी आवश्यकताओं के लिए प्राप्त कर ले.
यदि हम इस व्यवस्था को अपना ले तो आत्महत्या के लिए मजबूर किसानों को तो रहत मिलेगी ही साथ में मंदी जैसी आपात स्थितियों से बचा जा सकेगा. किसान एवं ग्रामीण गरीब की दशा भी सुधरेगी..इसके माध्यम से हम भूख के अभिशाप और कुपोषण जैसी स्थितियों से भी बच सकेंगे. यह एक नयी अर्थव्यवस्था की और एक सार्थक कदम भी होगा..
एक प्रकार से यह ग्रामार्थाशास्त्र की शुरुआत होगी. सरकारी खेती का क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के माध्यम से होना चाहिए. पंचायतों को प्रति वर्ष फसल विशेष के लिए सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य मिले. वेतन, बोनस एवं भूमि का मासिक/वार्षिक किराया भी पंचायतों के द्वारा ही सीधे किसानों को प्रदान किया जाना चाहिए.
कुंवर सुनील सत्यम.