Saturday, December 29, 2012

कब होंगे हम इंसान..


वैज्ञानिक कहते है
हम बन्दर, चिम्पैज़ी, गुरिल्ले की
संतान हैं.
वो कहते है ,
कभी हमारी एक पूंछ होती थी.
पूँछ गायब हो गई ..
इन्सान होना एक प्रक्रिया है
यह प्रक्रिया हजारो साल से
 अनवरत जारी है..
हम लगातार कोशिश कर रहे है
 इन्सान बनने की.

हर बार हमारी कोशिश
चढ़ जाती है
हमारी लापरवाही की भेंट.
गलियों में घूमते बेख़ौफ़ भेडियों
ने हर बार हमारी उम्मीदों
पर हाथ साफ़ किया है..
हमारी हर कोशिश
हो जाती है बेमतलब.
हम अपने को आज भी,
 उसी चिम्पैंजी रूप में पाते है.
चारो तरफ कुत्ते, भेडिये,
और खूंखार जानवर..

दूर दूर तक जंगल सुनसान..
आखिर कब होंगे हम इंसान.?
अभी बहुत वक़्त लगेगा..
शायद १००/५००/१००० साल
या उससे भी ज्यादा..
आखिर कब तैयार होगी
 मानवता की बगिया,
कब तक दामिनियां
दरिंदगी की शिकार होंगी..
कब होंगे हम इंसान..
आखिर कब..?

सुनील सत्यम


Tuesday, December 25, 2012

ये मौसम गुलाबी..


यहाँ हर जगह शरदोत्सव,
और ये मौसम गुलाबी..
उधर हड्डियों में गलन  .
और उसकी तकदीर में खराबी.
यहाँ "अंगूरी" की आग,
वहां उसके फूटे भाग..
यहाँ देर तक अलाव होगा,
उसे चले जाना है आज रात ही,
सुबह उसका जलाव होगा..

Sunday, December 23, 2012

लखनवी गुलाबी ठण्ड


लखनवी गुलाबी ठण्ड..
गोमती नगर में हमारा होस्टल.
छुट्टियाँ और मै..
सिर्फ मै और दो चार मित्र
बाकी सब चम्पत..
श्यामलाल की बेड टी,
नाश्ता, खाना..
शाम को बेडमिन्टन कोर्ट
पर पसीना..
ठंडक गुलाबी से हिसाबी होने लगी..
कपडे गीले..चलो अब चाय पीले..
ठंडक गुलाबी नहीं है..