Friday, December 30, 2016

अर्थक्रांति

मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ

एक मुद्रा-विहीन या मुद्रा रहित अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) का तात्पर्य ऐसी अर्थव्यवस्था से है, जहाँ मुद्रा का इस्तेमाल नहीं होता है या न्यूनतम होता है। एक मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था में मुद्रा की जगह डिजिटल पैसे का इस्तेमाल किया जाता है, तथा लेनदेन व भुगतान डिजिटल यंत्रो जैसे की मोबाइल, एटीएम आदि द्वारा किया जाता है।
मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था प्राचीन समय में भी चलन में थी। तब यह वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित हुआ करता था, जिसे बार्टर प्रणाली के नाम से जाना जाता था। “बिटकोइन (Bitcoin) “ के आने से मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्थाओं को और अधिक बल मिला।
हाल ही में भारत सरकार के विमुद्रीकरण के फैसले ने भारत में मुद्रा के महत्त्व को लेकर कुछ सवाल पैदा किये है। और डिजिटल पैसे को एक समाधान के रूप में देखा गया है।
भारत सरकार भी मुद्रा-विहीन भुगतानों को प्रोत्साहन दे रही है। और आखिर के कुछ सालो में सरकार ने कुछ योजनाओं के तहत ई- भुगतान तथा डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा दिया है। भारतीय सरकार की मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था के लिए किये गए प्रयास निम्लिखित है:

1. जनधन योजना , आधार तथा मोबाइल :
भारत सरकार द्वारा शुरू की गई योजनायें जनधन से ले कर जनधन मोबाइल तथा अन्य  पहलों जैसे की मुद्रा बैंक (Micro Units Development & Refinance Agency Ltd-MUDRA) का एक उद्देश्य मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था भी रहा है।
आधार कार्ड सरकार और जनता के बीच एक महत्वपूर्ण  संपर्क है। इसकी वजह  से जनता को भ्रष्ट अधिकारिक चीजों से ज्यादा मतलब नहीं रहेगा, और वो बिना किसी रुकावट के अपना काम कर सकेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी मूडी की एक रिपोर्ट ने यह दिखाया है कि डिजिटल भुगतान से उभरती  अर्थव्यवस्थाओ को 0.8% फायदा होगा जबकि यह विकसित अर्थव्यवस्थाओ के लिए 0.3% है।
डिजिटल लेनदेन का एक फायदा यह भी है की यह आसानी से नजर रखी जा सकती है। साडी लेन-देन की प्रक्रिया सही और सुनिश्चित ढंग से होगी|
मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था के ओर बढ़ने के अन्य भी कई उपकरण है जैसे कि Unified Payments Interface (UIP), एटीऍम, Aadhaar-enabled payment system (AEPS ), Unstructured Supplementary Service Data (USSD) पर आधारित मोबाइल बैंकिंग तथा ई-बटुवा आदि।

2. ऑनलाइन भुगतान को बढ़ावा

करेंसी नोटों के विमुद्रीकरण, भारतीय अर्थव्यवस्था को मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने पर सहायक साबित होंगे। विमुद्रीकरण के घोषणा के तीन मुख्य प्रभाव होंगे । पहला , डिजिटल भुगतान में  घातीय वृर्द्धि होगी। दूसरा, वे ई- वाणिज्यिक  लेनदेन  जो सुपुर्दगी पर अदायगी के माध्यम से होते थे  उनमें भारी गिरावट आयेगी । तीसरा, क्रेडिट कार्ड्स के संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।
पहले आयकर विभाग के विनियमन  के अनुसार  क्रेडिट कार्ड से एक साल में २ लाख रुपयों से ऊपर के लेन-देन  की समीक्षा देना जरूरी था, और ग्राहक डिजिटल भुगतान करने के लिए अनिच्छुक थे। अब यह २ लाख की सीमा आगे बढ़ाई जायेगी। भारतीय भुगतान परिषद् ने एक  बयान जारी  किया जिसमे ये कहा गया कि डिजिटल भुगतान की  कुल विकास दर अलग अलग उद्पादों में  40-70% तक रही है। डेबिट कार्ड की विकास दर 40% , क्रेडिट कार्ड की विकास दर 15-20% है। परन्तु इसके साथ साथ कुल भुगतान में मुद्रा द्वारा किये गए भुगतान में भी वृद्धी हुयी है।
अभी यह मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था के एक नए दौर की शुरुवात है  और मुद्रविहीन उद्योग की विकास दर आने वाले 2 सालो में 100% रहने की उम्मीद है। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह मुद्र्विहीन दिशा में बढ़ने के लिए एक सकारात्मक सूचक है।

3. डिजिटल भारत का विचार

जैसा की हमें ज्ञात है, भारत की 70 फीसदी आबादी  ग्रामीण प्रष्ठभूमि में रहती है।  इसीलिए ग्रामीण इलाको में भी  आवश्यक डिजिटल आधारित संरचना का विकास करना  सरकार के लिए मुख्य चुनौती है। भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने का काम पहले ही शुरू कर दिया है।
ग्रामीण इलाको में मोबाइल  इन्टरनेट की पहुँच भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बिक्री के बिंदु (PoS-Point of sale) पर भुगतान केवल मोबाइल इन्टरनेट के द्वारा काम करता है। और डिजिटल लेनदेन के लिए लोगो को शिक्षित करना भी बेहद जरूरी है क्योंकि बिना इस बात को जाने  इसका इस्तेमाल करना असंभव ही होगा।
यह कहा जा सकता है कि  जब तक ग्रामीण क्षेत्रो के स्थानीय  किराने की दूकान तक ऑनलाइन भुगतान की सुविधा नहीं पहुच जाती तब तक मुद्रा से मुद्रविहीन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता।

4. वित्तीय सुरक्षा

डिजिटल भुगतानों की वित्तीय सुरक्षा मूद्राविहीन अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मसला है। हाल ही में साइबर हमलावरों द्वारा लाखो डेबिट कार्डो से डाटा चोरी की घटना ने  भारत  के वितीय सस्थानो की सुरक्षा पर सवाल खड़े किये थे। और यह भी एक वजह रही है कि लोग डिजिटल भुगतान की जहग मुद्रा से भुगतान करने को ले के ज्यादा सहज है। तो मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय संस्थानों की डिजिटल सुरक्षा बेहद जरूरी पहलू है।

5. अन्य मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्रों से सीख

भारत पहले से मुद्राविहीन देशो के माडलों  पर विचार कर सकता है। उरुग्वे ने व्यवसाइयों को  डिजिटल भुगतान का इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित किया । तो  भारत भी डिजिटल भुगतान पर व्यवसाइयों को थोड़ी छूट दे सकता है। एक अन्य उदाहरण स्वीडन का भी है। पूर्णरूप से मुद्रविहीन अर्थव्यवस्था होने के बावजूद स्वीडन में अब भी 20% लेनदेन मुद्रा से ही होता है।

6. वितीय समावेश

भारत में अब भी कम आय वाले तथा गरीब लोगो की संख्या बहुत ज्यादा है। जो किसी भी तरह की वितीय सेवाओं  से वंचित है। समाज के इस बड़े तबके का जब तक वित्तीय समावेश नहीं हो जाता तब तक मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता। इसीलिए वित्तीय समावेश मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। और भारत सरकार ने इस दिशा में भी कई कदम उठाये है।
इस्लामिक बैंकिंग और भारत में इसकी सार्थकता
Cashless India
मुद्रा-विहीन भविष्य की ओर सात कदम:
1. 3 लाख से ऊपर के मुद्रा आधारित लेनदेन पर बैन लगाना।
2. इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन को प्रोत्साहन देना।
3. डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम का कानूनी समर्थन देना।
4. 2 लाख से ऊपर के मुद्रा आधारित लेनदेन पर 1% कर लगाना।
5. 2 लाख से ऊपर के लेनदेन के लिए PAN कार्ड के इस्तेमाल को आवश्यक करना।
6. तत्काल भुगतान सेवा तथा आधार कार्ड के द्वारा भुगतान को लागू करना।
7. भारत बिल सिस्टम के तहत बिजली तथा अन्य बिलों  लिए एक वेबसाइट को तैयार करना।

मुद्रारहित अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ:

भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा से ही चलती आ रही है। 5% से कम भुगतान डिजिटल माध्यम से होते है। यह इसीलिए होता है क्योकि समाज के बहुत बड़े तबके के लोग इन बैंकिंग सुविधाओं से अब भी वंचित  इसीलिए मुद्रा ही उनके पास एक मात्र साधन है। जो लोग डिजिटल भुगतान कर सकते है वो भी मुद्रा का इस्तेमाल करते है। अब हम उन कारणों पर चर्चा करेंगे जो यथास्तिथि को समझने तथा मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह भारत की अर्थव्यवस्था का विस्तृत परिदृश्य प्रस्तुत करेगा जो मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था की संभावनो को देखने और समझने का और अधिक स्पष्ट दृष्टिकोण बनाने में मदद करेगा।

1. कार्ड और POS

आरबीआई ने जुलाई 2016 में स्पष्ट किया कि बैंको ने रद्द कार्ड्स को हटा कर के,25.9 मिलियन क्रेडिट कार्ड्स तथा 697.2 मिलियन डेबिट कार्ड्स वितरित किये। यह कार्ड्स की संख्या काफी बड़ी है। परन्तु केवल कार्ड्स किसी अर्थव्यवस्था को मुद्रविहीन अर्थव्यवस्था में नहीं बदल सकते। और वितरित कार्डो की संख्या और जिनको कार्ड मिले उन लोगो के संख्या में समानता नहीं है। लोगो की संख्या जिनके पास कार्ड है वह कार्ड्स की संख्या से कम है। और अधिकतर कार्ड्स शहरी क्षेत्रो में आवंटित हुए है। जहा एक इंसान के पास 3-4 कार्ड्स है।और ग्रामीण इलाको में कार्ड्स की संख्या काफी कम है। और कार्ड्स का इस्तेमाल केवल तीन कार्यो के लिए किया जाता है। वो ऑनलाइन भुगतान , एटीऍम से पैसे निकलना व भेजना , बिक्री केन्द्रों  जैसे दूकान, पेट्रोल पम्प आदि पर भुगतान के लिए इस्तेमाल।
आरबीआई का एक और डाटा यह दिखता है कि  जुलाई 2016 तक कुल मिला के विभिन्न स्थानों में 1.44 मिलियन POS टर्मिनल स्थापित गए।इनमे से 1.16 मिलियन POS टर्मिनल Bank, SBI, ICICI Bank, HDFC Bank, और  Corporation Bank के है। इन पांच बैंको में से 4 बैंक मुख रूप से शहरी बैंक है।

2. ए टी एम

भारत की जनसँख्या लगभग 1.2 बिलियन है। और अभी भारत में लगभग 2.12 लाख एटीएम मशीन तथा  1.3 मिलियन  POS कार्ड मशीन है। लोग डिजिटल भुगतान की ओर जाना चाह सकते है परन्तु बहुत जगह इन्टरनेट की कमी तथा अनियंत्रित बिजली के आवंटन से समस्या पैदा होती है। इस कमी को दुरुस्त करने से मुद्रविहीन अर्थव्यस्था की ओर बढ़ने में बहुत सहायता मिलेगी।

3. मोबाइल

मोबाइल के द्वारा भुगतान करना एक रोचक चीज हो सकती है परन्तु इसके लिए इन्टरनेट की जरूरत होती है।  जुलाई 2016 में भारत में  881 मिलियन भुगतान डेबिट कार्ड्स, एटीएम , तथा POS टर्मिनल के माध्यम से हुए। इनमे से 85% लेनदेन एटीएम से पैसे निकालने में किया गया। कुल मिला के 92% लेनदेन एटीएम के द्वारा हुवा। इससे यह तथ्य सामने आता है कि भारत में डेबिट कार्ड का इस्तेमाल खरीदारी करने से ज्यादा एटीएम से पैसे निकलने के लिए किया जाता है। अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 150,000 से 200,000 टेलिकॉम रिचार्ज काउंटर है।परन्तु भारत की जनसँख्या को ध्यान में रखते हुए POS की संख्या, टेलिकॉम रिचार्ज  काउंटर की संख्या काफी कम है।

4. इन्टरनेट:

वर्तमान में 100 में से केवल 13 भारतीय नागरिको के पास इन्टरनेट सुविधा है। और ग्रामीण इलाको में इन्टरनेट की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है। इसीलिए ग्रामीण क्षेत्रो को मुद्रविहीनअर्थव्यवस्था से जोड़ने के लिए एक विश्वसनीय इन्टरनेट नेटवर्क की जरूरत होगी।

5. कुछ अन्य रिपोर्ट :

ए टी कीर्नारी के उपभोक्ता व्यवहार पर किये  गए एक सर्वे के अनुसार  शौपिंग माल में लगभग 90% लेनदेन मुद्रा के द्वारा किया गया। और ई- शौपिंग कंपनिया अपना उपभोक्ता दायरा बढाने के लिए ‘सुपुर्दगी पर नकद अदायगी’ के विकल्प का इस्तेमाल करती है। हालांकि सुपुर्दगी पर नकद अदायगी’ का इस्तेमाल करने वाले लोगो की संख्या में कमी आयी है फिर भी यह कुल लेनदेन का 60% है।
गूगल  तथा बोस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार  भारत में कुल 75% लेनदेन मुद्रा पर आधारित था जबकि विकसित देश जैसे कि अमेरिका,जापान, जर्मनी , फ्रांस आदि में यह केवल 20 से 25% था। और हाल में सरकार विमुद्रीकरण के निर्णय के बाद से मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों में चार गुना बढ़ोत्तरी हुयी है।
तदापि, यह देखना काफी मजेदार होगा की मुद्रा-विहीन भारतीय अर्थव्यवस्था का आने वाले समय में कैसा प्रभाव होगा। यह व्यवस्था कर-अधिकारीयों को भारत में होने वाले तमाम लेन-देन का ब्यौरा वास्तविक समय में देगा। इसके साथ ही ये देखना भी आवश्यक है की लोग इस व्यवस्था को कैसे अपनाते है और किस तरह से अपने आप को इसके साथ जोड़ते है। अगर सब कुछ सुनिश्चित प्रक्रिया के तहत रहा तो, मुद्राविहीन व्यवस्था भारतीय वित्त व्यवस्था को बदल कर रख देगा।

Monday, December 12, 2016

कम जानते हो!

तुम मुझे जितना भी जानते हो,कम जानते हो,
तुम जितना भी बांचते हो,कम बांचते हो,
कड़वे पर मुंह बनाकर,सिर्फ मधुर को छांटते हो!!!
मैं जो दिखता हूँ ,वही हूँ!
ये तो तुम हो,जो मुझे मनमाफिक बांटते हो!!

Tuesday, September 13, 2016

कुरान का विज्ञान


"अल्लाह वह है जिसने-"आकाशों (मतलब कुरान के अनुसार अनेक आकाश हैं) को बिना सहारे के ऊंचा बनाया जैसा कि तुम देखते हो। फिर वह सिंहासन पर आसीन हो गया । उसने सूर्य और चंद्रमा को काम पर लगाया। हर एक नियत समय के लिए चला जा रहा है। वह सारे काम का विधान कर रहा है। (सूरा;13-2)

   "और वही है जिसने धरती को फैलाया (मतलब धरती चपटी है) और उसमे जमे हुए ( ? ) पर्वत एवं नदियां बनाई और हरेक पैदावार कि दो दो किस्मे (जबकि धान जैसी फसलों की हिंदुस्तान मे 3-3 किस्मे (मौसमनुसार)-ऑस,अमन,बौरों है ) बनाई। वही रात से दिन को छिपाता है (जबकि रात दिन पृथ्वी की अपनी धूरी पर गति के कारण है ) (सूरा 13-3)
"हमने धरती को फैलाया और उसमे अटल पहाड़ डाल दिये और उसमे हर चीज नपे तुले अंदाज़ मे उगाई।....हम ही वर्षा लाने वाली हवाओं को भेजते हैं और उससे तुम्हें सिंचित करते हैं।' (सूरा 15,19-25)25
"मै सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करने वाला हूँ। " (सूरा 15.26-43)
"उसने मनुष्य को एक बूंद से पैदा किया " (सूरा 16.4-9)
"वही है जिसने आकाश से तुम्हारे लिए पानी उतारा जिसे तुम पीते हो और उसी से पेड़ और वनस्पतियाँ भी उगती हैं। " (सूरा 16.10-11)

"और उसने तुम्हारे लिए रात और दिन को और सूर्य और चंद्रमा को (मतलब रात-दिन और सूर्य चन्द्रमा मे कोई आपसी संबंध नहीं है।) को कार्यरत कर रखा है। (सूरा 16.12-13)
"अल्लाह ने ही आकाश से पानी बरसाया और फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित किया" (सूरा 16.65)
"और अल्लाह ने ही तुम्हारे लिए तुम्हारी सहजाति पत्नियाँ बनाई॥"(सूरा 16.72-74)
"  और तुम सूर्य को उसके उदित होते समय देखते तो वह उनकी (कुछ नवयुवको का किस्सा जो अपने रब पर ईमान लाये थे ! के वर्णन के दौरान का प्रसंग) गुफा से दाहिनी और को बचकर निकल जाता है और जब अस्त होता है तो उनकी बाईं और से कतराकर निकल जाता है। " (सूरा 18.17-18)
 "जिसने तुझे मिट्टी से, फिर वीर्य से पैदा किया, फिर तुझे एक पूरा आदमी बनाया।" (सूरा 18.32-44)
"याद करो जब मूसा ने अपने युवा सेवल से कहा 'जब तक मै दो दरियाओं के संगम तक न पहुँच जाऊँ चलना नहीं छोडुंगा, चाहे मै यूं ही दीर्घकाल तक सफर करता रहूँ।' फिर जब वे दोनों संगम पर पहुंचे तो वे अपनी मछली से गाफिल हो गए और उस मछली ने दरिया मे सुरंग बनाते हुए अपनी राह ली" (सूरा 18.60-65)
   मूसा द्वारा वर्णित सम्राट जुलकरनैन के हाल का वर्णन है । जहां खुद मूसा ने सूर्यास्त के बारे मे बताया है '
" उसने एक अभियान का आयोजन किया। यहाँ तक कि जब वह  सूर्यास्त स्थल तक पहुंचा तो उसे मटमैले काले पानी की एक झील मे डूबते हुए पाया और उसके निकट उसे एक कौम मिली" (सूरा 18.84-88)
"फिर उसने एक और अभियान किया। यहाँ तक कि जब वह सूर्योदय की दिशा मे एक स्थान पर जा पहुंचा  तो उसने सूर्य को ऐसे लोगों पर उदित होते पाया जिनके लिए हमने सूर्य के मुक़ाबले मे कोई ओट नहीं रखी थी' (सूरा 18.89-91)

जारी॰ ॰॰
(स्रौत; पवित्र कुरान,सुगम हिन्दी अनुवाद, अरबी से उर्दू अनुवाद मौलाना मुहम्मद फारुख खान, उर्दू से हिन्दी अनुवाद डॉ मुहम्मद अहमद , मधुर संदेश संगम प्रकाशन नई दिल्ली-110025 संस्कारण 2015 ISBN No॰ 978-81-920697-0-8 )


















Saturday, September 10, 2016

Vivechana

किसी कथन/कानून/श्लोक/आयत आदि की व्यक्तिगत विवेचना(Interpretation) महत्वपूर्ण होती है. विवेचक जब किसी चीज की विवेचना करता है तो उसके अपने कुछ निहित हित होते है हालांकि यह उसके व्यक्तिगत ज्ञान और विवेक का परिचायक भी होता है..इस्लाम के विषय में गैर-इस्लामिक और इस्लामिक दोनों ही लोगों की जानकारी की अपनी अपनी सीमाएं है.पवित्र कुरआन मूल रूप से अरबी भाषा में लिखी गई. खासकर भारत में मुसलामानों में भी अरबी के कम ही जानकार है.इसलिए कुरआन के अन्य भाषाओं के अनुवादित संस्करण ही उपलब्ध हैं जिनमे आयातों की विवेचना अनुवादक के विवेक एवं ज्ञान से प्रभावित है.अरबी में अल्लाह,तुर्की में तारक,उर्दू में खुद एवं रब उपरवाले को दिए गए विशेषण हैं. खासबात यह है की ऊपर वाला शब्द सभी धर्मों को आपस में जोड़ता है क्योंकि ईश्वर के पर्यायवाची के रूप में सभी इस शब्द को स्वीकार करते है.कोई भी धर्म नफ़रत को मान्यता नहीं देता है,इस्लाम का तो शाब्दिक अर्थ ही सलामत है अर्थात सभी की सलामती को मानने वाला पंथ.गाँवों में तो अभिवादन के रूप में साहब सलामत शब्द खूब प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ है क्या आप सलामत हैं? जेहाद शब्द धर्म के अन्दर आ गई कुरीतियों से धर्म की रक्षा के लिए किये जाने वाले प्रतिधर्म सुधार प्रयासों के लिए होता है लेकिन कुछ उन्मादी एवं ज़ाहिल इस शब्द की गलत व्याख्या करते है..वंदेमातरम् गाने को लेकर भी कम अकलियत वाले हाय तौबा मचाते है. यदि मुहम्मद साहब ने किसी उपकारी के लिए सम्मान प्रदर्शित करने की मनाही की होती तो नमाज़ अता करने में धरती की और सिर झुकाने और दंडवत करने की प्रक्रिया ही न होती, अप्रत्यक्ष रूप से तो नमाज़ अता करते वक्त ही एक सच्चा अल्लाह का स्मरण करते हुवे दिन में पांच बार धरती माँ का भी सजदा करता है. वन्देमातरम् के ठेकेदारों से कहीं ज्यादा एक सच्चा मुसलमान माँ की वंदना करता है..इबादत और वंदना में एक मूल फर्क है जिसे हम सब यदि समझ ले तो गैर जरुरी विवाद खड़े नहीं होंगे-इबादत सिर्फ उपरवाले की होती है और वंदना आप चाहे जिसकी करे...मा,बाप,मातृभूमि..आदि.

Friday, September 2, 2016

वन गुर्जरी बहन फातिमा

वनगुर्जरि बहन फातिमा की दास्ताँ..

वनगुर्जरि बहन फातिमा देधड,शाकुम्भरी खोल में रहने वाली वनगुर्जर है.इनका जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण है.सुबह से शाम तक आजीविका के संघर्ष में गुजरता है.इनके पास 6 भैंस है जिनके चारे पानी की व्यवस्था इनको अपने पति सैफ कसना के साथ मिलकर करनी होती है.पशुओं के लिए पानी की तो समस्या नहीं है क्योंकि पानी खोल में बहता रहता है.लेकिन चारे की समस्या बड़ी है, हालांकि पशुओं का पेट ज्यादातर चरान से ही भरना पड़ता है या पहाड़ों से चारा काटकर लाना पड़ता है जिसमे घासफूंस और पेड़ों की पत्तियां शामिल है..अक्सर वन दारोगाओं से ये परेशानी उठाते है, ऐसा बहन फातिमा ने बताया..फातिमा का पूरा दिन खाना पकाने,पानी की व्यवस्था करने और जंगल से सुखी लकड़ियाँ चुनने में लग जाता है.दिन भर में ₹ 30.00/ किलो की दर से लगभग 6-7 किलो दूध बिक जाता है जो शाकुम्भरी में रहने वाले दुकानदार खरीद लेते हैं.2 से 3 हजार रुपये की लकड़ियाँ भी जंगल से चुन कर फातिमा बहन का परिवार बेच लेता है. साल भर में वनविभाग के अधिकारियों को भी चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है..इंधन के लिए बचाने के बाद थोड़ी बहुत लकड़ी बच जाती है, उसकी बिक्री कर देते हैं.फातिमा बहन को अभी कोई संतान नहीं है..
फातिमा बहन का जीवन बहुत संघर्ष पूर्ण है..जब मैंने सैफ से पूछा की क्या तुम जानते हो की तुम जंगलों में क्यों रहते हो ? जवाब में सैफ ने बताया की जब औरंगजेब ने सताया तो हमारे पुरखे जंगलों में चले गए..! इसके अतिरिक्त सन 1857 में गुर्जरों द्वारा किये गए विद्रोह के बाद जब ब्रिटिश भारत सरकार का दमन चक्र चला था उस समय बहुत से गुर्जर वनों में जा छुपे थे जो कभी बाहर वापस नहीं आये. सैफ ने बताया की उसने बड़ी कठिनाई से बेहट के शान्ति देवी स्कूल से 8वीं कक्षा पास की है और वह आस पास के वनगुर्जरों में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है..हालांकि बहन फातिमा नहीं पढ़ पाई.लेकिन उसने वादा किया की वह अपने बच्चों को प्रेमकुल मिशन के माध्यम से खूब पढ़ाएगी..सैफ ने बताया कि अपने गौत्र में शादियाँ नहीं की जाती है. यदि कोई ऐसा कर देता है तो पंचायत उसे समाज से बाहर कर देती है.हाँ मामा की लड़की से यानी माँ के गोत्र में शादी वर्जित नहीं है..

स्वामी बलादेवानंद जी ने प्रेमकुल मिशन की स्थापना की हैं जिसका उद्देश्य वनगुर्जरों के बच्चों को निशुल्क मुख्यधारा की उच्च शिक्षा उपलब्ध कराना है.स्वामी जी के मिशन के तहत ही आज हम वनगुर्जरों से मिलने, उनके दुःख बांटने यहाँ पहुंचे. प्रेमकुल मिशन के लिए स्वामी जी इस क्षेत्र में जमीन की तलाश कर रहे है.स्वामी जी के इस मिशन में मै पूर्णतः उनके साथ हूँ और आप ?

Thursday, August 11, 2016

वो रोया बहुत

कत्ल के बाद मेरे वो रोया बहुत,
मुझसा अब दुश्मन न होगा।
नजरो से गिराकर जो सजा दे,
हर सख्श में वो फन न होगा।

Tuesday, August 2, 2016

मैं आज बहुत रोया हूँ।

मै रात नहीं सोया हूँ.
मै आज बहुत रोया हूँ !
मेरा बचपन जहाँ बीता..
मैंने चलना जहाँ है सीखा !
कैसा दुर्भाग है ?
वहाँ आज आग है,
वहाँ सहमी हुई है गलियाँ,
हाथों में है दुनलियाँ..
टूट रहे वो रिश्ते,
हैं गायब अमन फ़रिश्ते.
नफ़रत की इस फसल को,
जाने किसने बोया है.
हर बात पे सुबका हूँ,
हर खबर पर रोया हूँ.
मै रात नहीं सोया हूँ,
मै आज बहुत रोया हूँ..
मेरा मुज़फ्फरनगर
बन गया मुर्दाघर..
वहां छतों पे चील है,
रक्त-रंजित सपील है.
आज खुश चमन नहीं है,
भरपूर कफ़न नहीं है !
घर में इंतजार है..
उदास घर-बार है.
किसी ने बेटा, बाप किसी ने.
कोई लाल-सिंदूर खोया है.
लम्हा सदी हो गया है.
आज सबर बहुत खोया हूँ.
मै रात नहीं सोया हूँ,
मै आज बहुत रोया हूँ..
@ सुनील सत्यम..

Tuesday, July 19, 2016

अबकी कांवड़िया

अबकी कांवड़िया तिरंगे
वाली लाना,
सावन में मटकी
जल गङ्गे वाली लाना।
अबके.....
अधर्मी बेख़ौफ़ है
घायल कश्मीर है
अबकी रे फ़ौज़
सिरफिरंगे वाली लाना
अबकी..
मस्ति का दौर नही
समर का उद्घोष है।
मान पे है हमला
फरसा चंगे वाली लाना
अबकी....
@सुनील सत्यम,स्वरचित

Monday, July 11, 2016

उसका कोई दीन नही

वो दहशतगर्द है,उसका कोई दीन नही।
ये मीठी शीर है,नमकीन नही,
पहले मिटने तो दे अपनी हस्ती।
फिर मैं एक और तुम तीन नही।

चेहरे पर तेरे,मुस्कान बहुत है।
अब तन्हाई में रोते हो शायद।।
बर्बादी का मंजर तुझे सुकून देता है,
बर्बाद गर तेरा कोई अपना न हो।
@सुनीलसत्यम

Sunday, July 10, 2016

Should Almighty God....?

Should Almighty God Order Human Being
to Kill Fellow Human?

by Syed Kamran Mirza

24 January, 2005

In the theological dogmas of Islam there are plenty of unanswered questions to which most apologists play same old game of sidetracking and putting lame excuse to the “out of context”, or faulty Quranic translations. Among them, I like to discuss one question about which I have been asking/searching the truth for long time, but till today nobody could give me satisfactory answer.   This is the question ofkilling/slaying” human being by another human being. Several years back when I read Holy Quran from beginning to end, I was totally dismayed when I found Allah telling/advocating to “kill” another human being by numerous Ayats.  I could not conceive this idea of insisting by Allah to kill somebody.  How come?  Question which bothered me most is why an omnipotent/almighty God will ask for killing human being—His own creation?  Who knows, may be this advice by Allah to “kill Kaffirs” is working as the main fuel/ingredients behind the very spirit of Islamic Jihad—helping create more and more Osama bin-Laden and other potential killer terrorists?

My father used to read Quran twice a day (after Fazr and before magreb) with so much devotion until his death.  One day I asked him if he (my father) understand what he was reciting with such a melody and devotions.  My father’s answer was negative. My father did not understand a single word of what he was reciting daily.  Now I can count how many thousands of times he uttered the word “killing”, of course, with sweet melody.   We can even count how many trillion trillion times this word of “killing” is being uttered by devout Muslims throughout the whole world.

Let me cite an example to illustrate this better. Say I am the owner of a flock of 100 cows.  These hundred cows are mine, I am the sole owner, and by virtue/authority of my ownership, I have every right to do, what ever I want to do with these 100 cows.  Now, if in the course of time, I find that some cows have become very destructive and wicked up to a degree that these cows are out of control.  Then, I have two choices in front of me to handle these wicked cows:  (a) tell other good and docile cows to kill those wicked cows by their sharp horns, or (b) because of my authority, I sell them, or killed  (Zabai kare khaeyya felba) those wicked cows and invite friends to a feast.  Quite obviously, I will choose (b), and never will advocate poor docile cows to kill those wicked cows, right?  But here in the God’s business of correcting wicked people, I really do not find any logic why Omnipotent God should ask human (who are less than cows/sheep to God) to kill other wicked humans. This problem of disobedient by some humans is so little problem for an Omnipotent/almighty Allah that, it should take only a wishful thinking for Him to correct all Kaffirs. Does any reader see any logic to it?    So far, I could not get any logical/convincing answer from any Islamic apologists to this very dynamic question.

I cannot believe that, God can really ask human being to kill/slay another human being!  The center of my question is not the word “killing,” but WHO actually is asking for “Killing.”  This “WHO” is nobody but OMNIPOTENT/ALMIGHTY GOD.  Is it the Allah really telling/advocating to “kill” another human being by numerous Qur’anic Ayats?  I could not conceive this idea that Allah is insisting his creation to kill somebody who is also his creation.  Question that bothered me the most is why an Omnipotent, Almighty, and Merciful God will ask for killing human beings.  Why then He is called a Merciful?  Omnipotent God is not like human being of flesh and blood that He will take revenge through others.  Even the mother of a serial killer will not ask others to kill her son, rather she will ask for forgiveness.  Is the Almighty God crueler, or weaker than the mother of a serial killer is?

Of course, if these killing orders (i.e., Ayats like: 9:5, 2.191, 5.33.or 2.193) have had come from Prophet Muhammad (pbuh) himself then, I would not ask this question.  Because, Prophet Muhammad was also a human being of flesh and blood, and in need, he also can ask for necessary killings.  Apologist’s example/comparisons with history of mankind --killing by American Civil War, battle of Kurukhetra or Hitler, Yahya Khan, Tikka Khan, Winston Churchill, etc., would fit here very well.  Because, these are simply earthly (parthive) happenings and humans are not omnipotent/almighty by any standard.  Human cannot achieve something simply by wishful thinking like an Omnipotent God.  But God of course can achieve something simply by His wish.  As we are told in Quran that, “Of course if Allah (swt) wills He can create anything just by saying “Qun” (Be) and it exists.  Likewise Allah (swt) can destroy at will.”  If we are to believe the text of preceding quotation by Mullahs/Maoulanas then we cannot find any validity of asking by God to kill anybody.  God Himself can kill them by His AZRAEL.  Or, Omnipotent God simply can correct every anomaly by His wishes, period.  He should not need anybody’s help.

Another new question has generated by the Qur’anic Ayat quoted by most Apologists.  That is, “Let there be no compulsion in religion… (Quran-2: 256).  This Ayat is used repeatedly by all apologists like a broken record to claim Islam’s tolerance to others, although, there are hundreds of Qur’anic Ayats and Sahih hadiths (which apologists hardly disclose) proves otherwise.  My humble questions here to all apologists are:  What is the punishment of an apostate as per Islamic Sharia?  Isn’t the punishment of an apostate is death by beheading or stoning?  Why in Saudi Arabia all other religious activities except Islam are completely prohibited?  Why Saudi Government has closed all Shiite Mosques in Saudi Arabia?  Why then early propagators of Islam had to fight so many bloody battles both defensively and offensively?

What is the difference between the code of King Hammurabi of Mesopotamia (2900 B.C): Killing for revenge, i. e., “life for life, hand for hand, eye for eye, ears for ears, tooth for tooth and wounds equal forequal”,   and the Allah’s Guidance of Qur’anic Ayat: 5:45, i.e. “life for life, hand for hand, eye for eye, ear for ear, tooth for tooth and wounds equal for equal.”  Do we see any similarities between the judgment of King Hammurabi (a human), and Omnipotent Allah? Here in this decree of judgment, who probably copied from whom?

Most important and mysterious questions for us to ponder are: Why Muhammad (pbuh), the prophet of God, needed to insist/ask people to fight/kill fellow people violently?  And why did he lure Islamic believers that they will get Jannat el-Ferdous if they kill kaffirs?  Why on the other hand, another Prophet of the same God Jesus Christ said, “He who live by the sword will die by the sword” or “If you get slapped on your right cheek then give your left cheek for the another slap.”  Why Jesus asked people to conquer the hearts of enemies by their love?  Why Mahatma Gandhi did asked people not to attack/kill the enemies but to tolerate all tortures?  Was Gandhi or Jesus a better person than the omnipotent who goes by the name Rahman-ur-Rahim (Kind and forgiving)?

As a child, we were told by the clerics back home that Almighty Allah has 100 names.  The two names show up side-by-side in the book Niam-ul-Qur’an (By Moulvi Mohammad Shamsul Huda) page 20.  One of the names is Ya-Gaffaru (Oh, forgiver!).  The other name mentioned next to it is Ya-Kah-haru (Oh, big punisher).  The Mullahs of the world should know better that the Almighty couldn’t be both all at the same time.  Whether we like it or not, Jesus seems to have opted for the forgiving part of Allah, whereas, our Payare-Nabi Mustafa Karim (pbuh) had shown his proclivity to mete out punishment and thus opting for the title Kah-haru.  No wonder so many bystanders Arab had to be murdered in the broad daylight because they had their nagging doubts about the divinity of Muhammad (pbuh).

The bottom line in this ongoing debate is the following: It would be quite unjust for the CREATOR to approve killing of his creations by his own creation.  If He thinks that some creations are becoming unruly, and are deviating from the Seerut-al-Mustaquim, then, why can’t He come down from his Arash to this lowly place call Arda (Earth) and do the killing Himself?  He most certainly has ever-ready Azrael under His arm.  But could it be that poor Azrael is too tired doing his job from the time immemorial!  In that case, Allah is very wise to tell us that we men should kill another fellow human being because in His infinite wisdom He thought we are the right persons for this job.  What a cruel joke this Almighty is playing on us!

Literatures:

1.      The Holy Qur’an, Translated by A. Yousuf Ali, Published by Amana Corporation, Brentwood, Maryland, 1983

2.      Holy Qur’an, Translated in Bengali by Ahmadiya Muslim Centenary Publication of Bangladesh, 4 Bakshi Bazar road, Dhaka, 1992

3.      Buchari Sharif, Bengali Translation by Maulana Muhammad Mustafizur Rahman, Sulemani Printers and Publishers, Dhaka, Second edition-1999

4.      Holy Qur’an, Bengali translation by Maulana Muhiuddin khan, Khademu Harmain Sharifain, Saudi Arabia, Madina Mannwara, 1413 Hijri.

   

Saturday, July 2, 2016

आतंकवाद का मजहब ?

यह एक कोरी अकादमिक एवं कृत्रिम बहस है कि क्या आतंकवाद का कोई मज़हब होता है ?
    भले ही आतंकवाद को कोई मज़हब हो या न हो लेकिन हर आतंकवादी का अपना एक सुनिश्चित मजहब होता है।उसके अपने धार्मिक विचार और उद्देश्य होते है जिनसे कुप्रेरित होकर वह आतंकी घटनाओं को अंजाम देता है। अधिकांश आतंकवादी कथित जेहादी है और ज़ेहाद आतंक के बिना नहीं हो सकता है।
      ढाका की आतंकवादी घटना ने बता दिया है कि आतंकवाद न केवल हमारे दरवाजे पर पुरजोर दस्तक दे रहा है वरन घर में घुसकर हमारी रेकी भी कर रहा है।
अपने निजी स्वार्थो के कारण जो दुनिया आज तक आतंकवाद को परिभाषित ही नहीं कर पाई है उससे आतंकवाद का संगठित मुकाबला करने की उम्मीद पालना बेवकूफी होगी।
   यदि आतंकवाद का कोई मजहब  नहीं है तो फिर कैसे ओवैशी ISIS आतंकियों की मदद करने की सार्वजनिक घोषणा कर देते हैं।कमाल की बात तो यह है कि कोई उनकी निंदा तक नहीं कर रहा है।
        राजनितिक नेतृत्व से किसी उम्मीद करने की बजाय हमें न केवल अपने स्वाभिमान व आत्मरक्षा के लिए स्वयं तैयार रहना होगा वरन अपने पडोसी की भी चिंता करनी होगी।पड़ोसी आज आपदा में है तो कल हमारी ही बारी है।।।
#निजीविचारसत्यम