Friday, January 20, 2012

जातीय समीकरण और उत्तर प्रदेश चुनाव

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मीडिया की भूमिका आज के माहोल में और ज्यादा बढ़ गयी है..उत्तर प्रदेश सहित अन्य ५ राज्यों में चुनाव होने वाले है..लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव होते है चुनाव..यह देख कर दुःख होता है की चुनावी माहोल में धरातली मुद्दों को उभारने के बजाय मीडिया सिर्फ मसाला तलासती नजर आ रही है. उत्तर प्रदेश की हालत इतनी ख़राब दिख रही है की रचनात्मक एवं धरातली मुद्दे गौण हो गए है..विकास यहाँ मुद्दे के रूप में स्थापित नहीं हो पाया है. भ्रष्टाचार का मुद्दा यहाँ निस्तेज पड़ा दिखाई दे रहा है.
ऐसा लगता है की ये चुनाव उत्तर प्रदेश के लिए दुर्भाग्य का दरवाजा खोल देंगे ..
मुद्दे के आभाव में सिर्फ जातीय समीकरण ही चुनाव चर्चा का विषय बने हुवे है.. पार्टियाँ जातीय समीकरण के बहाने चुनावी वैतरणी पार करने की फ़िराक में है जो सिर्फ दुर्भाग्य ही ला सकता है.
बहन जी के चुनावी पंडितों ने २००७ के चुनावों का विश्लेषण सामाजिक इंजीनियरिंग के रूप में प्रचारित किया था, जो एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था. जब कि मेरा मत है कि कथित सामाजिक इंजीनियरिंग का परिणाम नहीं था कि मायावती जी को पूर्ण बहुमत मिला था. बल्कि इसका सबसे बड़ा कारण था कम मतदान होना. २००७ के चुनावों में ४५.९५% मत पड़े थे.
दलित और अति-पिछड़ा वोटर बसपा को वोट डालता है.गत चुनाव चिलचिलाती गर्मी के मौसम में हुवे थे जिसमे भाजपा और अन्य पार्टियों को वोट डालने वाला आराम पसंद वोटर बूथ तक ही नहीं पहुंचा . इसके विपरीत मेहनतकश दलित और पिछड़े मतदाताओं ने बसपा के लिए वोट किया और उसे पूर्ण बहुमत तक पहुँचाया.
गत चुनावों में हुवे मतदान के आंकड़ों पर नजर डाले तो बात स्पष्ट हो जाएगी.

वोटर मत प्रतिशत

अति-पिछड़े और दलित 80% मतदान
मुस्लिम 5०%
सवर्ण 27%
उच्च-पिछड़ा 27%

कुल मतदान ४६%

इस बार चुनाव के समय को देखते हुवे लगता है कि मत प्रतिशत ६० से ६५ % के बीच पहुँच जायेगा. अगर ऐसा हुवा तो बहन जी राजनितिक यात्रा कठिन लगती है.क्योंकि बढ़ा हुवा मत प्रतिशत ज्यादातर सपा और भाजपा को लाभ कि स्थिति में पहुंचा देगा.यदि मत प्रतिशत में होने वाली बढोतरी से स्वर्ण ५२ से ५५%, उच्च-पिछड़ा ५० से ५७% तक पहुँच गया. यद्यपि मुस्लिम मत प्रतिशत में भी ५ से ८ % कि मत वृद्धि कि संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बढे हुवे मत प्रतिशत का अल्प लाभ ही बसपा को मिलने कि संभावना है. सवर्णों के बढे हुवे मतदान का सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा.जबकि उच्च-पिछड़ों के बढे मत प्रतिशत का लाभ सपा और भाजपा दोनों को मिलेगा. ऐसे में यदि पहले और दूसरे नंबर पर भाजपा और सपा आसीन हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.बसपा ९० से ११० सीटो तक सिमट सकती है.
कांग्रेस ३५ से ४२ सीते प्राप्त कर सकती है. कुल मिलाकर राज्य का भाग्य पस्त करने में यह चुनाव अहम् भूमिका निभाएगा.

कुंवर सत्यम.

Sunday, January 15, 2012

चुनाव आयोग की मूर्तियां...!

चुनाव आयोग को इसकी वास्तविक महत्ता का भान तत्कालीन चुनाव आयुक्त टी.एन . शेषण ने कराया था. तब से लेकर आज तक यह चुनावोत्सव के सफलता पूर्वक कई aayojan कर चुका है.
हाल में ५ राज्यों में चुनावों का आयोजन होने जा रहा है. जिनकी तयारी में चुनाव आयोग कोई कसर छोड़ना नहीं चाहता है. अनेक महत्वपूर्ण फैसले इस सन्दर्भ में चुनाव योग ले चुका है.
लेकिन इसी बीच एक हास्यास्पद और सनक से भरा फैसला भी योग ने लिया जो किसी भी तरह से तार्किक नहीं है. यह फैसला है हाथियों की मूर्तियों को ढकने का. मूर्तियों को ढकने में लाखो रुपये का खर्चा आयेगा जो सिर्फ फिजूल खर्च माना जाना चाहिए. हाथी की या किसी अन्य चुनाव चिन्ह की प्रतिमा बना देने मात्र से वोट नहीं मिलते..आज का मतदाता पहले से कही अधिक जागरूक है. उसे पता हिया की वह किसे और क्यों वोट देगा.
सभी व्यक्तियों के दो दो हाथ हैं जो कांग्रेस का चुनाव चिन्ह है..लेकिन फिर भी लोग सिर्फ इसी वजह से कांग्रेस को वोट नहीं दे देते..
मूर्ती ढकने का मूर्खता पूर्ण फैसला लेने से चुनाव आयोग बसपा का चुना प्रचार ही कर रहा है..जब से यह खबर बनी तब से अनेक बार टीवी चैनल हाथी की मूर्तियों का प्रसारण कर चुके है और अनेक बार समाचार पत्र इनकी तस्वीरे प्रकाशित कर चुके है..यहाँ काम अगर करना ही था तो इन मूर्तियों की तस्वीरो से सम्बंधित खबरे प्रकाशित होने एवं उनके प्रसारण को रोकने की व्यवस्था चुनाव आयोग क्यों नहीं कर पाया. क्या एक चुनाव आयुक्त की सनक पूरा करने का खर्च उठाने के लिए देश की जनता विवश है..

चुनाव आयोग की जिम्मेदारी लोकतंत्र के सबसे बड़े रक्षक की भूमिका निभाने की है..मदारी की नहीं...

कुंवर सत्यम.